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Chapter 8 :

दर्द

मेरे गम को स्याही से यूँ मापा गया

हूँ लड़की, इसलिए जिस्म को नज़रों से नापा गया

कहते है वो, छोटे लिबास न तुम पहना करो

मेरी उडान को कपड़ों से आका गया

 

दुनिया ये सारी देखती रही चिड़-हरण

हूँ मैं लड़की क्या बस यही है वो कारण

माना की पहनती हूँ मै लिबास अतरंगी

उनका क्या, जिनका है मिजाज़ सतरंगी

नज़र नहीं नज़रये की बात है

शायद मेरी-आपकी

पहली “औ” आखरी मुलाकात है

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तम्मना थी मेरी सितारों-सी चमकूँ मैं

इस बगिया में गुलाब-सी महकूँ मैं

पर, कुछ मनचलों ने मुझे कुचल दिया

थी कली इसलिए मुझे मसल दिया

 

या डर था उन्हें मैं आगे निकल जाउंगी

सपने नये इन पलकों में सजाउंगी

इन लिबासों का कोई मान न होगा

इन जालिमों पर अभिमान न होगा

जहाँ सारा बेटियों का सम्मान करेगी

बेटे ही नहीं बेटियां भी नाम करेगी

 

सपनो की उडान मेरी कुछ ऐसी थी

पंछी की परवाज़ भी ऐसी न थी

खाब थे गिद्ध-सी उड़ने की

तोते-सी चहकने की, गुलाब-सी महकने की

कोयल सी गुनगुनाऊँ मैं, हमराज़ को बहकाऊ मैं

सपने सारे कांच से टूट गये

टुकड़ें मेरे मुझे ही चुभ गये

सपने सारे मेरे अधूरे रह गये..!!

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चीख़ सुन मेरी दिल्ली थर्राई थी

माँ की ममता, चुपके से घबराई थी

दिल्ली की इस घटना ने सबका ध्यान खीचा था

सारा हिंदुस्तान संग मेरे चीखा था

मेरे दर्द की ललकार पुरानी थी

मुझसे पहले जाने कितनों ने सुनाई थी।।

 

शायद वो भूल गये

पार्वती, दुर्गा भी बन सकती है

दुष्टों से अकेले लड़ सकती है

नए काल में

मैं नया संचार करुँगी

नव-जीवन में मैं उनका संहार करुँगी ।।

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ममता का दामन छल्ली कर, वो ज़ालिम मुस्काया था

मेरे ज़नाज़े पर कमबख्त, वो भी मोमबत्ती लाया था

मेरी दर्द भरी कहानी, मोमबत्ती पर ही सिमट गयी

ममता का आँचल आज-फिर, मुझसे लिपट गयी

आशा मेरी जीने की, जीते ही यारों मिट गयी

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किसी और की खुशियों को

मैंने खुद को दान किया

नैनों से ओझल सपनों को

इक नया आयाम दिया

ख़ुद को बांट कई हिस्सों में

औरों को सम्मान दिया

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बहुत हुई ये भाषण-बाजी, बहुत हुआ हंगामा

करेगी तांडव अब बेटियां, देखेगा ज़माना

 रूद्र,गौरी में है समाये, आभान इसका कराना है

बनो बन अँधा धृतराष्ट्र, बैठा ये ज़माना है..

 

इक नहीं, दो नहीं

जाने कितनी द्रौपदी बन गयी

ज़ालिम की अग्नि में आकर

जीवित ही यारों मर गयी

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