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Chapter 1 :

मुझसे इश्क की परिभाषा न पूछो तो बेहतर है

माना मेरे इश्क के किस्से तह तक है

अरे मैं तो अपनों में भी परायों सा रहा

उसने आते ही सबको अपना बना लिया।।

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हो "गर" इश्क तो ऐतबार होना चाहिए

धड़कन पे उसकी इख्त्यार होना चाहिए

देखी है हमने इतनी तस्वीरें आपकी

अब मेरे दिल पर इस्त्यार होना चाहिए ।।

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चाहतों के अश्यां में तेरा ही बसेरा हो

काली रात के बाद उम्मीदों का सवेरा हो

हो जाये मशहूर हमारे किस्से

शशांक का हो मिलन किरण से

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जाने कब से दुनिया से छिपाए बैठे है

तेरी मोहब्बत का अरमा जगाये बैठे है

खाब तो आते है रोज इन पलकों में

मिलन का सपना सजाये बैठे है ।।

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भेजा तो था फरमान अपने करार का

न पता था हो जायेगा अंत यूँ, मेरे ऐतबार का

बेशक की थी वफाई तुमसे

ना पता था फरमान यूँ राह में जल जायेगा ।।

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इस मुर्दे से फिर, वो हाल ले गयी

जाते-जाते भी, वही मुस्कान दे गयी

फेरी निगाहें जालिम ने ऐसे

फिर वही तीर लगा हो जैसे

बच न सका था मै पहली बार

फिर वही हुआ, जालिम मेरे साथ ।।

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न सोचा था उनसे यूँ मुलाकात होगी

लबों से लबों की बात होगी

इश्क करने वालों पर बिगड़ते रहे उम्र भर

ना जाना था इश्क में इतनी हसीं रात होगी ।।

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यादों की पतवार लिए

तन्हाई को सवार किए

उतर तो आया मैं गहरे पानी में

उस मुस्कान पर ऐतबार किए ।।