Autho Publication
Author's Image

Pre-order Price

.00

Includes

Author's ImagePaperback Copy

Author's ImageShipping

BUY

Chapter 7 :

दास्तां

उन दिनों की है ये कहानी

बची पड़ी थी जब सारी जवानी

दिल की चिड़ियाँ चहक रही थी

मन की कलियाँ महक रही थी

बेगानों की बस्ती में कोई अपना सा लगा था

हमारी हस्ती का कोई सपना सा लगा था

उसे देख भवरा मचल सा गया

क्या बताऊँ अठरह सालों में हुआ पहली बार..!!

 

नज़र पड़ी जालिम पर जब पहली बार

मनो चुभा कोई काँटा वर्षो बाद

वैसे तो चुभते है कई पैरों में

पर, दिल में लगा पहली बार...!!

 

देखा उसे तो मन बहक सा गया

मनो किसी डाल पर मैना चहक सा गया

दूर बैठी तोते को देख मन ही मन किया क़रार

दिल मेरा यूँ मचला था पहली बार...!!

 

उसकी धड़कन मेरी धड़कनों से जा मिली

लगा मुझे ये कली अब आकर खिली

यही सोच मन के भवरे हो उठे बेकारार

मेरी जिस्म से आई थी महक पहली बार...!!

 

मै तो गागर में भी दुबकी लगा सकता हूँ

पर सागर सी आँखों में लगा न सका

बस मिलने वाली थी निगाहें उससे

झुकी थी अलग रंग में निगाहें अभी

रंग ऐसा न चढ़ा था नैनो पे कभी

बेशक हुआ था ये भी पहली बार...!!

 

दूर से तकता रहा उसे बैठे कैंटीन में

सामने थे दोस्त वो भी बैठे कैंटीन में

कहा दोस्तों ने जा जाकर बात कर

उससे बयां सभी अपने जज्बात कर

जज्बात मेरे किसी कोने में सिमट सा गया

तभी ही क्यूं अचानक घंटी बजी

वो अपने क्लास गयी, मैं अपने क्लास गया

किसी से मिलने की चाहत जगी मन में

पहली बार...!!

 

बैठा था इक शाम घर के आँगन में

जाने कहाँ से तस्वीर आ झलकी आँगन में

ऐसा लगा हवाओ ने रुख बदला

फिजाओ ने रूप बदला

पलके झुकी थी मेरी, आंखो में सपने थे

लगा ऐसा कही पास मेरे अपने थे

पलके खुली तो फिर चला गया सपने में

जाने कहाँ से आ तस्वीर ढूंढ रही थी वो अंगने में

दिल ने कहा ऐतबार कर, पर

दिमाग ने कहा थोड़ा और इंतजार कर

फँस चूका था मै दिल औ दिमाग की कश्मकश में

ऐसा था मै फँस गया किसी की साजिश में

जाने कब वो हाँथ से तस्वीर ले गयी

लगा ऐसा मनो वो मेरी तकदीर ले गयी

मूड़ कर देखा न जालिम ने इक भी बार

शायद हुई थी किसी अनजाने से तकरार पहली बार...!!

 

उसकी ये तकरार ऐसी छाप दे गयी

दिन के उजाले में हंसी खाब दे गयी

खाबों के रंग ऐसा रंगा मैं