मौके पर चौका
शर्मीली, बहुत शर्मीली थी, दुनिया के लिए बर्फीली थी,
पर अपने, मर्द दोस्तों के लिए, नशीली और अतीली थी,
नया-नया प्यार, नया-नया खुमार, प्यार का बुखार था,
एक दिन, की भी जुदाई, बेवफा सनम-सा अत्याचार था,
नया प्यार, परवान चढ़ा ही था, चाहतों का खुमार, अभी छाया ही था,
कि, लॉकडाउन लग गया, ब्रेक लगाने,
रातों में मजा,
अभी आया ही था,
तीन महीने, दिल तड़पता रहा, कब खुलेगा बंद, मचलता ही रहा,
फोन पर इश्क चलता तो रहा, पर कल्पनाओं में दम, घुटता भी रहा,
लॉकडाउन पर लॉकडाउन, लगता रहा, मिलन का दिन, धुन्धलाता रहा,
कब मिलेगा मौका, आग लगे, इस कोरोना में,
दिल, चिल्लाता रहा,
कोरोना से ज्यादा, जुदाई कहर, बरपाती रही, प्यास बुझाने, पानी
नहीं, अम्लीय बारिश, कराती रहा,
वीडियो-कॉलिंग में चेहरे के साथ, सब दिख जाता था, बस खुद
को, इतने में ही, समझाती रही,
चंद महीनों में, सालों की योजनाएं बनाई, कुछ योजनाएं, इंतजार में
दम, तोड़ गई,
ऐसे मिलेंगे, ऐसे करेंगे, पर बंद खुलता नहीं, समय के साथ, उमंगें
उठी और उड़ गई,
फोन पर, रोज नयी योजनाएं, बनती और दम तोड़ जाती, बस
योजनाएं थी, हकीकत तो जैसे, रूठ-सी गई थी,