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Chapter 3 :

Poem 3

गरीब और कोरोना !


आज निकल पड़ा हूँ 
वैसे नहीं,
जैसे बर्षो पहले निकला था 
रोटीयों की ख़ातिर !

पहले एक आशा थी
विश्वास था 
श़हर में काम मिलेगा, ख़ाना मिलेगा 
और मिला भी !

पर आज बात अलग है 
कोरोना काल हैं कुछ सही नहीं है
पैदल ही निकल पड़ा हूँ घोर निराशा में
मेरी किसको पड़ी हैं, मेरी दुनियाँ अमीरों से अलग है !

गरीब हूँ पर, चल सकता हूँ 
मैं अकेला नहीं,
लाखों-करोड़ो ने श़हर छोड़ा है 
कोई साईकिल से, कोई पैदल
सबके सब सबकुछ छोड़-छाड़कर निकल पड़े है !

मैं भी निकला हूँ 
भूखा-प्यासा, मन में हताशा ब़दहाली-बेतहाशा 
परिवार की चिंता, मन में कुंठा
जिन्दा लाश की तरह, बस निकल पड़ा हूँ और चलता ही जा रहा हूँ !

जुर्म किसका है 
मकान म़ालिक का
फैक्टरी मा़लिक का
साहेब का या सरकार का
कोई फर्क नहीं पड़ता अब, सबको नमस्कार करता चलता हूँ !

सब परेशान है
क्या अमीर, क्या ग़रीब
सबको डर लगता है कोरोना से मर जाने का
संक्रमण फैल जाने का 
लाकडाउन है सब बंद हैं, चलना मना है
पर मेरी समस्या अलग है मजबूरी है इसलिए निकल पड़ा हूँ !

सबाल तो बहुत हैं
क्या कारण है, क्यों निकला हूँ 
सवाल-जवाब बाद में करूँगा 
अभी तो मुझे जाना है, अपने घर जाना है
सर पर बोझा लादकर, खुद को हारकर निकल पड़ा हूँ !

कब आ पायेगी किनारे मेरी नाव 
हजारों किलोमीटर दूर है मेरा गाँव 
सड़कें सुनसान हैं पुलिस का भी डर हैं
रेल की पटरियों, पगडंड़ियों, खेतों से छुपता-छुपाता,
इतनी समझ नहीं हैं मुझे, कैसे और कब तक
असहाय, बेसुध-सा बेसहारा नासमझ, चलता ही जा रहा हूँ,
बस चलता ही चला जा रहा हूँ !

भूखा-प्यासा थका-हारा हूँ बेश़क 
पर रूकूगाँ नहीं, चलता ही चला जाऊँगा 
कोई मद़द भी तो नहीं करता कोरोना के खौफ के कारण
दो गज दूरी ने ग़हरी खाई खोद दी है, कोई नहीं देगा मुझे शरण !

सब घर के अन्दर हैं, 
पर मेरा घर तो बहुत दूर है 
मुझे भी मेरे घर पहुँचाकर कैद कर दो 
मैं यहाँ नही मरूगाँ, मेरा यहाँ कोई नहीं है 
कोरोना से मरूगाँ या भूख से, पता नहीं
पर यहाँ तो बिल्कुल नहीं, यहाँ बिल्कुल भी नहीं ! 

घर पर माँ हैं माँ की याद बहुत आती हैं 
एक बार घर पहुँच गया तो लौटकर नहीं आऊँगा 
कोरोना से बचने के चक्कर में
भूख से न मर जाऊँ, डर लगता है 
पता नहीं कब और कैसे घर पहुँच पाऊँगा 
जाने दो मुझे जाने दो, मुझे तो बस घर जाना है ! 

मैं किसी को भी बीमारी नहीं फैलाऊँगा
घर पहुँचकर सबको दूर से एक बार, बस एक बार देखना चाहता हूँ 
यहाँ दम घुँटना है मेरा राशन नहीं है जीने का साधन नहीं है, मन खाली है रात काली है 
नहीं रहना अब मुझे यहाँ, अमीरों के शहर में 
जाने दो मुझे जाने दो, रोको मत, मुझे तो बस घर जाना है ! 

 - रौनक

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