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Chapter 1 :

Poem 1

ऐ कोरोना !


घर बैठे-बैठेे इ़तना ज़रूर सोचना
तुम कौन हो और क्यों हो 
बदली छँटेगी साथ में बीमारी कोरोना
फिर से जी लेना ज़िंदगी, ज़िन्दादिल रहो 
निकलेगा ये बुरा वक्त, मत कर रोना-धोना
छोड़ दे शोक मनाना, कर ना हाय-हाय हो-हो !

क्यों ज़रूरी है सबकुछ जीतना 
त्याग कर, तेरी जय हो 
शर्म कर, बहुत हुआ फ़ालतू भ़ौकना 
शांति पकड़, थोडा़-सा तो भयभीत रहो 
ये कोरोना का क़हर है, जरूरी है ज़ान-ज़हान को बचाना
प्रयास कर, योग कर, श़़ाकाहार से स्वस्थ बने रहो !

ऐसे सत्कर्म, सद्भावना से ज़रूर करना
ज़िससे मरने के ब़ाद अम़र रहो 
मेरी शुभकामनाएँ, दिल से स्वीकार करना 
घर में रहो, सुरक्षित रहो !

 - रौनक

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