मैं जानता कि मैं क्यूँ लिखता हूँ औऱ ये सच्चाई है कि मैं लिखता हूँ और मेरी लेखनी मुझे सबसे ज्यादा प्यारी है। बस, ये कोरे कागज़ देखे नहीं जाते, ये बिन स्याही के पन्ने एक अजीब सी हलचल पैदा करता है मेरे अंतर्मन में, मुझसे यूँ देखे नहीं जाते ये खालीपन और मैं इनसे ही अपना अकेलापन बाट लेता हूँ और ये कोरे काग़ज़ ही मेरे हमदम है और मेरे पक्के साथी भी।
मेरे ख़यालो का आइना हैं ये जहाँ मैं खुद को देख पता हूँ और अपने लेखनी से खुद को सँवारने की कोशिश करता हूँ। मेरा अकेलापन, मेरी अनकही बातें, मेरे अनसुने और अधूरे जज़्बात हैं ये, मेरे अनछुए पहलू हैं ये जिसके छूने के एहसास मुझे आनंदमयी कर देता है, मेरे ज़ज़्बात को फिर से जगा देता है।
इन कोरे कागज़ पे जो नीले रंग के स्याही, जब सादे रंग में अपनी जादू बिखेरती है वो जादू मेरे सपने को हक़ीक़त में जोड़ने का काम करती है, मेरे हँसते आँखों से बिखरते आंसू है, ये मेरे और मेरे जैसे तमाम सोच रखने वाले के दर्द है, ये मेरा प्यार इनके प्रति। एक यही तो है जिनपे मैं पूरी तरह आज़ाद हूँ, इनपर न कोई रोक है, न कोई टोकने वाला औऱ न कोई कशमकश और न कोई जद्दोजहद।
एक यहीं है जहाँ मैं अपने ज़ज़्बातों के लौ से, अपनी बातों से कोरे कागज पे रंग भरता हूँ। कभी बारिश के टपकते हुए निश्छल और पारदर्शी प्यार वाली बूंदे तो कभी बचपन की वो सारी हसींन बातों को जो यादों के दायरे में है और जो याद नहीं उसे यादों के दायरे में लाने की कोशिशें और समेटने की इक्षा। ये एक साथी है जो कुछ तुक्ष बातें लिखने पे भी नहीं बोलता है और चुपचाप मेरी सारी बातें अपने आप में दबा लेता है और सहन कर लेता है, ठीक वैसे हीं जैसे बचपन में हमारी सारी मांगे माँ और पापा सहन कर लेते थे चाहे वो माँग कितना भी बड़ा क्यूँ ना हो। जो स्नेह बचपन में मिला ठीक वही स्नेह आज भी मिल रहा है इन कागज़ों जिसमें मुझे अपनेपन की आहट सुनाई देती है, जो बहुत हीं खाश बनाती है।
ये कोरे कागज़ के ख़ाली पन्ने कुछ बोलते नहीं और ना हीं कुछ ज़बाब देते, बस मेरी बातों को सुनके अपनेआप में दबा लेते यहीं, और कैद कर लेते यहीं खुद में। ये मेरी बातों से न तो विचलित होते और ना हीं परेशान।
“मेरी दुनिया, मेरे जज़्बात” बस इनसे शुरू होके इनसे हीं खत्म होती है। ये ऐसे मित्र है जो हमारी आपस की बात किसी को कभी बताते नहीं और न हीं किसी से कोई शिकायत करते। वो मेरी लिखी हर एक बात को अपनी अमानत समझते है और खुद में समेट कर रखते है। ये ऐसे मित्र है जो मेरे लिखे हुए हर एक शब्द के गवाह होते है और यही अपनापन हमें एक दूसरे के इतने करीब लाता है।
ये कभी भी रंगों से भेदभाव नहीं करते और नहीं धर्मों से। इनके कोई धर्म नहीं होता और ना हीं कोई अपना मज़हब। लेखनी ही इनका मज़हब है और सच्चाई ही इनका धर्म। ये हर एक रंग में रंग के खुद को रंग लेते है और एक प्यारा सा और खूबशूरत सन्देश देते है समाज को की हमें रंगों के आधार पे, मज़हब और धर्मों के नाम में कोई नहीं बाँट सकता। हर एक रंग में रंगने का अपना ही कुछ मज़ा है, जो हमें निश्छल प्रेम करने के लिए प्रेरित करते है और इससे हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। ये सब को एक नज़रिये से देखते हैं और कोई भेदभाव नहीं करते हैं। यही तो।
एक ऐसा साथी जिसपे ना तो झूठ का तबका लगता है और ना ही इनकी बातों को कोई दबा सकता है, क्यूंकि ये हमेशा अपने संवेदनाओं को लिखती है और उनकी बातें कभी सुनी जाती है तो कभी अनसुनी की जाती है, उनके भावनाओं को समझने वाला कोई नहीं है और ये एक विलय है जो आने वाले समयों के लिए बहुत ही घातक साबित हो सकता है।
वो दिन आयेगा जब ये अपनी यादें लेकर बिखर जाएँगी और उनके सपने तिल-तिल करके टूट रहे है और इनकी यादों को एक यादों के घरोंदे समझ के संजोया जायेगा। कुछ कहानियाँ अभी भी है जो लिखी नहीं गयी है, जो अनसुलझे है तो कुछ अनकही भी। जब अनसुलझे पहलुयों को सुलझायी जायेगी तब ज़ज़्बात उभर के आएंगे और वो दिल की अपनी बात होगी।
कुछ लिखी हुई कहानियाँ यादे बनकर रह जायेगी जो जन्मों-जन्मांतर तक याद रखी जायेगी। आज मेरे बहुत सारे किस्से लिखने बाकी है और बहुत सारे सुनने भी बाकी है, जो मेरे जाने के बाद भी कहे और सुने जायेंगे। कुछ तो ऐसे भी होंगे जो इस भीड़ में गुम हो जायेगी तो कुछ अपनेपन की याद दिलाएगी, उनलोगों को भी जो कभी इसकी क़द्र नहीं किये थे।
इन सभी बातों के बीच एक बात हमेशा झकझोड़ देगी और यही याद दिलायेगी की था एक लिखने वाला नादान और पागल जो दुनियादारी छोड़के इन पन्नो से प्यार कर बैठा उनके लिए जीने लगा। इन पन्नो में उसकी बातें थी, ज़ज़्बात थे, उसके सपने थे और उसके हक़ीक़त भी। ये पन्ने उसके लिए सिर्फ कोरे कागज भर ही नहीं था, वो उसमें रंग भरता था और गली-मोहल्ले, चौक-चौराहे, साथी-संघाती कहीं भी शुरू हो जाता था आने चंद लब्जों के साथ। कभी हमसफ़र की बातें किया करता था तो कभी इश्क़ और मुहब्बत की बातें तो कभी समाज में फैले कुरीतियों की तो कभी सरकार पर करारा प्रहार।
अंत में मैं बस यही कहना चाहता हूँ की-
बस आप सुनो अपनी आवाज़ को-
आप सुनो अपने ज़ज़्बात को-
ये ज़िन्दगी है-जीने के लिए "प्रियम"
समझो, लिखो और बदलो समाज को!!