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Chapter 2 :

वो सुबह आएगी!

वो सुबह कभी तो आएगी,

जब हम एक होंगे,

ना कोई उच्च होगा और

ना कोई नीच होगा,

होंगे सब आपस में भाई-भाई,

जब खेतों में खुशियों के फसल लहल़ाहायेंगे-

वो सुबह कभी तो आएगी !

वो सुबह कभी तो आएगी,

जब हम एक होंगे-

ना होगा कोई दुश्मन अपना,

ना होगा आपस में द्वेष भावना-

ना होंगे कभी आपस में लड़ाई,

ना बनेगा कोई महिसासुर,

ना होगा कोई अब कसाई,

जब रहेंगे सब मिलजुल कर,तब-

खुशियों के गीत गुनगुनाएँगे-

वो सुबह कभी तो आएगी,

जब हम एक होंगे-


वो सुबह कभी तो आएगी,

जब हम एक होंगे,

ना होगी धार्मिक झंझट कही पे,

ना होगी संवेदनशील आहत कही पे-

ना होगा 90 का शासन 10 पर,

ना होंगे झूठे-वादे-भाषण-मंच पर,

होगी आज़ादी खुल के जीने का,

जब आज़ाद पंछी की तरह-

खुले आकाश मे -उड़के क़हक़हे लगाएँगे-

वो सुबह कभी तो आयेगी,

जब हम एक होंगे-


वो सुबह कभी तो आयेगी,

जब हम एक होंगे-

ना बिलखेंगे भूखे-नंगे बच्चे सड़क पे,

ना सुनी होगी ममता की आँचल-

ना लूटेगी माँ-बहनो की असमत-

ना कभी गरजेगा बिन बरसने वाला बादल-

मिटेगी जातिए भेद-भावना,जब-

सब एक साथ बारिश में मिलकर नहाएँगे-

वो सुबह कभी तो आएगी-


वो सुबह कभी तो आएगी-

जब हम एक होंगे-

होंगे सारे सपने साकार,

दुनिया को देंगे नयी आकार,

ना मरेंगे भूखे-नग्न-बिलखते बच्चे,

बनेगा मुहिम जब आत्मविश्वास होंगे सच्चे-

होगी एकजुटता ताक़त हमारी,जब-

वैशाखी-क्रिसमस-ईद-दीवाली-साथ मिलकर मनाएँगे-

वो सुबह कभी तो आएगी,

जब हम एक होंगे-

वो सुबह आएगीं और हमसब एक होंगे

 

जब,

मिटाएंगे अश्लीलता,समाज को देंगे नया आयाम,

जनवाद-सुसंस्कृति का फ़ैलाएँगे पयाम,

चुनेंगे हम सब नयाविकल्प’ ,

हम सब लेंगे अब नयासंकल्प’-

ख़त्म करेंगे कुसंस्कृति- -साम्राज्यवाद को,

वो सुबह ज़रूर आएगी “प्रियम”,जब-

खादी के वस्त्र पहने,

उन रक्षसो को अब हम सब मिलकर भगाएंगे-

वो सुबह कभी तो आएगी,

जब हम एक होंगे,

ना कोई उच्च होगा और-

ना कोई नीच होगा-

ना बनेगा हिंदू-मुस्लिम-सिख-इसाई,

होंगे सब आपस में भाई-भाई,

अब खुशियों के चमन में फूल भी,गाने गुनगुनाएँगे-

वो सुबह ज़रूर आएगी-ज़रूर आएगी-ज़रूर आएगी!