वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे,
ना कोई उच्च होगा और
ना कोई नीच होगा,
होंगे सब आपस में भाई-भाई,
जब खेतों में खुशियों के फसल लहल़ाहायेंगे-
वो सुबह कभी तो आएगी !
वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे-
ना होगा कोई दुश्मन अपना,
ना होगा आपस में द्वेष भावना-
ना होंगे कभी आपस में लड़ाई,
ना बनेगा कोई महिसासुर,
ना होगा कोई अब कसाई,
जब रहेंगे सब मिलजुल कर,तब-
खुशियों के गीत गुनगुनाएँगे-
वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे-
वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे,
ना होगी धार्मिक झंझट कही पे,
ना होगी संवेदनशील आहत कही पे-
ना होगा 90 का शासन 10 पर,
ना होंगे झूठे-वादे-भाषण-मंच पर,
होगी आज़ादी खुल के जीने का,
जब आज़ाद पंछी की तरह-
खुले आकाश मे -उड़के क़हक़हे लगाएँगे-
वो सुबह कभी तो आयेगी,
जब हम एक होंगे-
वो सुबह कभी तो आयेगी,
जब हम एक होंगे-
ना बिलखेंगे भूखे-नंगे बच्चे सड़क पे,
ना सुनी होगी ममता की आँचल-
ना लूटेगी माँ-बहनो की असमत-
ना कभी गरजेगा बिन बरसने वाला बादल-
मिटेगी जातिए भेद-भावना,जब-
सब एक साथ बारिश में मिलकर नहाएँगे-
वो सुबह कभी तो आएगी-
वो सुबह कभी तो आएगी-
जब हम एक होंगे-
होंगे सारे सपने साकार,
दुनिया को देंगे नयी आकार,
ना मरेंगे भूखे-नग्न-बिलखते बच्चे,
बनेगा मुहिम जब आत्मविश्वास होंगे सच्चे-
होगी एकजुटता ताक़त हमारी,जब-
वैशाखी-क्रिसमस-ईद-दीवाली-साथ मिलकर मनाएँगे-
वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे-
वो सुबह आएगीं और हमसब एक होंगे
जब,
मिटाएंगे अश्लीलता,समाज को देंगे नया आयाम,
जनवाद-सुसंस्कृति का फ़ैलाएँगे पयाम,
चुनेंगे हम सब नया ‘विकल्प’ ,
हम सब लेंगे अब नया ‘संकल्प’-
ख़त्म करेंगे कुसंस्कृति- औ-साम्राज्यवाद को,
वो सुबह ज़रूर आएगी “प्रियम”,जब-
खादी के वस्त्र पहने,
उन रक्षसो को अब हम सब मिलकर भगाएंगे-
वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे,
ना कोई उच्च होगा और-
ना कोई नीच होगा-
ना बनेगा हिंदू-मुस्लिम-सिख-इसाई,
होंगे सब आपस में भाई-भाई,
अब खुशियों के चमन में फूल भी,गाने गुनगुनाएँगे-
वो सुबह ज़रूर आएगी-ज़रूर आएगी-ज़रूर आएगी!