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Chapter 4 :

दायरा

                   

हमने खुद को समेट लिया है जब एक दायरे में

बेवजह क्यों सब आकर भीड़ बढ़ाते हैं ।

 

शायरा नहीं हैं, ये तो है मुझे भी यकीन

फिर हर अफसाना ग़ज़ल कैसे बना लेते हैं ।

 

गुफ्तगू जरा सी हो गई गर किसी से भी

लोग कई तरह के रिश्ते बना देते हैं ।

 

ऐसा नहीं की दुनिया देखी नहीं हमने अभी भी

पर यह दुनियादारी ही हम नहीं निभा पाते हैं ।

 

मैं क्या हूं यह मैं आज तक नहीं जान पाई

पर दूसरे मेरे बारे में ज्यादा जान जाते हैं ।

 

हैरान हूं मैं भी यहां के रस्मो रिवाजों से

हर पल इन इंसानों के चेहरे बदलते नजर आते हैं ।