मकान की चारदीवारी में रंग लगाया
कुछ तस्वीरों से दीवारों को सजाया ।
सीमेंट के टुकड़ों से झांकती कुछ ईंटो को
मरम्मत करवा के पैबंद सा लगवाया ।
कुछ नकली फूलों के गुलदस्ते कुछ सूखते फूल
पुरानी कालीन को नए तरीके से बिछाया ।
टूटते सोफे के पायों में बेदर्दी से कुछ कीलें ठोंकी
चद्दरों के सिलवटों से अपने तनावों को छिपाया ।
धूल भरी मेज़ पर डाली कढ़ाई की हुई वो मेज़ पोश
जिसमें मां ने पहली बार कुछ काढ़ना सिखाया था ।
एक दीवार में हमारी वो शिमला वाली तस्वीर लगाई
जिसमें मैंने कत्थई रंग वाला वही शॉल पहना था ।
खिलखिलाना मेरा कितना बचकाना लग रहा था
और बालों में वो पहाड़ी जंगली फूल उफ्फ ।
कोशिश की थी सफेद फैन से धूल साफ हो जाए
आलमरियों से पुराने कपड़ों को धूप दिखा आएं ।
पर क्या रिश्ता में पड़ी धूल साफ हो जाती है
बेरंग हुए जज़्बातों में नई जान आ जाती है ।
बहुत कोशिश की थी कुछ नयापन ले आए
बासी सी हो चली ज़िंदगी में ताजगी भर जाएं ।
कितनी जद्दोजहद की थी छोटे से अपने आशियाने को
जज़्बातों से भरा एक खूबसूरत घर बना जाएं ।
जहां हर सांस खिलखिलाती हो जहां हर सुबह
एक नई उम्मीद की नई रोशनी लाती हो ।
पर काश रिश्तों को भी मरम्मत कर पाते
थोड़ा जोड़ -तोड़ के उसमें नयापन ला पाते ।
कोशिशें अब भी जारी है है हमने अभी हार नहीं मानी है
देखते हैं ईंट पत्थरों के मकान को घर कब कह पायेंगे ।