उस अंधेरी चारदीवारी में था बैठा उसकी खुमारी में, वो हिज़्र के किस्से समेटे हुए उन यादों की अलमारी में, जो थी मेरी आँखों का सुकून था जिसके लिए भर भर के जूनून, पड़ जाये न मेरे आगे वो बस यही सोच के मैं डरता हूँ, वो बदल गयी ऐसे कैसे अब यही सोच के मरता हूँ, जज़्बात उभरते हैं अक्सर ही पर उन्हें खुद ही खुद में भरता हूँ, और अब जाके वो वापस आयी है जब मैं इश्क़ किसी गैर से करता हूँ....