तू कौन से सच का तालिब है
है कौन सा सच तुझको प्यारा
तू जो भी सुनना चाहेगा
अफ़रात मिलेगा वह सारा
तू मंदिर का शैदाई है
या मस्जिद तुझमें बसता है
तू इश्क़-ए-वतन में पागल है
या भक्तजनों पे हँसता है
बाबासाहेब का है मुरीद
या ऊँची ज़ात का है वारिस
है पसमान्दा का नुमाइंदा
या अशराफ़ों का खूँ ख़ालिस
तू थोड़ा बायें चलता है
या दक्षिणपंथी भ्राता है
तुझे गाय गाय ही लगती है
या तेरे लिए वो माता है
है दीन तेरा क्या ख़तरे में
या दीन तेरा है ज़ाती अमल
ये धरती सारी अपनी है
या बोता नफ़रत की है फ़सल
रोज़ी रोटी की जद्दोजहद
में जीता मरता रहता है
या 'हम-जैसे' 'उन-जैसों' में
लोगों को बाँटा करता है
तुझे औरत इन्साँ लगती है
या इज़्ज़त का इक पैमाना
उनके लिबास से तासुब है
या है आज़ादख़यालाना
मसला ये है मेरे भाई
हर ओर अजब है शोर मचा
हर मौजूँ पे हर बंदे की
पुरजोश राय है इकतरफ़ा
अख़बार अजनबी लगता है
टीवी से हूँ मैं ख़ौफ़ज़दा
सोशल मीडिया पे शामो-सहर
है दफ़न हो रही सच की सदा
इक सच तेरा, इक मेरा भी
पर असली सच खो गया कहाँ
हम रहे मुब्तिला बहसों में
वो मिला ना ढूँढे सारा जहाँ