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Chapter 4 :

तिवारी सर

देश का पहला प्लान्ड सिटी । मेरे सपनों का शहर । ग्रीन सिटी । कसीदे से सजे पार्क और घर । यही सब मेरे दिमाग में चल रहा था जब 2008 में मेरी 6 महीने की इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इस बेहद खूबसूरत में लगी थी । दिल्ली से अगर आप ट्रेन या बस पकड़ते हो तो मुश्किल से 5 घंटे में आप इस अद्भुत शहर में अपने पांव रख दोगे । मैं चंडीगढ़ शहर के लिए नया था लेकिन ये शहर मेरे लिए नया नहीं था । जब पहली बार orkut पे अपना अकाउंट बनाया था तब मेरी एक unknown friend इसी शहर की थी । पर सबसे बड़ी बात जो इस शहर को मेरे दिल के बेहद करीब ले आती थी वो ये थी की मेरे स्कूल के सबसे favorite टीचर Mr. Kamlesh Tiwari इसी शहर में रहते थे । स्कूल से रिटायर होने के बाद वो यही चंडीगढ़ में सेटल हो चुके थे । उनका चंडीगढ़ का एड्रेस मैंने अपने स्कूल के फ्रेंड मनोज से ले लिया था । मैंने अगले इतवार को उनके घर जाकर उनसे मिलने का प्लान बनाया । तिवारी सर हमारे हिंदी के टीचर थे । उनकी हिन्दी क्लास मैं कभी मिस नहीं करता था । वो जब क्लास में प्रेमचंद की कहानी गोदान पढ़ाते थे तो मेरे लिए वो प्रेमचंद बन जाते थे । जब रामधारी सिंह दिनकर जी की कविता पढ़ते थे तो लगता था की दिनकर जी ठीक हमारे सामने कविता पढ़ रहे हो । तिवारी सर कभी किसी बच्चे पे गुस्सा नहीं करते थे । उनका दयालु और उदार होना मुझे छू जाता था । घर जाकर मैं तिवारी सर की तरह हिंदी पढ़ने की नकल करके मां को रसोई में दिखाता था । मां बहुत हसती थी मुझे उस तरह से तिवारी सर की तरह देख के । मैं सर की तरह बनना चाहता था । स्कूल खत्म हुए , कॉलेज स्टार्ट हुए फिर नौकरी लगी लेकिन तिवारी सर की चांद जैसी शीतल छवि की तलाश जारी रही । कई बार उनसे मिलने की कोशिश की लेकिन मुमकिन हो नहीं पाया । कभी किसी से सुना था की तिवारी सर रिटायरमेंट के बाद दिल्ली शिफ्ट हो गए । कभी खबर आई की वो चंडीगढ़ में हैं । खैर अब जब मैं चंडीगढ़ में था तो मैंने निश्चय कर लिया था उनसे मिलने का । उनका घर मोहाली सेक्टर 56 में था । मुझे कम्पनी के तरह से एक किराए का घर चंडीगढ़ सेक्टर 22 में मिला हुआ था । मैंने तिवारी सर के लिए प्रेमचन्द जी की 'गोदान' किताब खरीदी थी । मुझे अपने स्कूल का वो दिन याद हैं जब उन्होंने टीचर्स डे पे अपनी फेवरेट किताब का नाम बताया था । मैने उसी दिन सोचा था की जब नौकरी मिलेगी तो गोदान किताब अपने सर को जरूर गिफ्ट करूंगा । वो दिन आ चुका था । मैं सुबह 11 बजे करीब बाहर सड़क पे आकर ऑटो को आवाज लगाई । मोहाली सेक्टर 56 करीब 30 km दूर था । मैं एक हाथ में किताब और दूसरे हाथ में पानी का bottle पकड़े ऑटो में बैठा चंडीगढ़ की सड़कों और गाडियों को देख रहा था । मेरे अंदर एक उत्साह तो था साथ ही साथ इस बात का डर भी था की अगर तिवारी सर ने मुझे नहीं पहचाना तो मुझे कैसा लगेगा । अगर वो घर पे नहीं हुए तो । उनको मेरी ये किताब अच्छी ना लगी तो । स्कूल में भी जब तिवारी सर को कोई बात पसंद नहीं आती थी तो वो कहते कुछ नहीं थे लेकिन चेहरे के भाव से पता लग जाता था की वो नाराज़ हैं । मैं खुद अपने स्कूल में तिवारी सर की क्लास में देख रहा था । मैं इन्ही सब बातों को सोच ही रहा था की मेरी कब आंख लग गई मुझे पता ही नहीं चला । सेक्टर 56 पहुंच के ऑटो वाले भैया ने मुझे जगाया । मैंने हड़बड़ा के आंख खोली तो ऑटो वाले भैया मुझसे हाउस नंबर पूछ रहे थे । मैंने मोबाइल में मनोज का व्हाट्सएप किया हुआ एड्रेस फिर से चेक किया तो उसमे हाउस नंबर लिखा हुआ था C-66 । कुछ ही देर में मैं तिवारी सर के घर के सामने खड़ा था । घर के आगे लिखा था तिवारी भवन । मैंने ऑटो मीटर में देखा तो 257 रुपए हुए थे । मैने जल्दी से ऑटो वाले को पैसे पकड़ाए वो घर के गेट की तरफ बढ़ा । मैं घंटी बजाई पर ये क्या । मेरे हाथ में बॉटल और किताब दोनो नहीं थे । जल्दी बाजी में किताब और बॉटल ऑटो में ही छूट गए थे । मैंने भाग के बाहर सड़क पे आया लेकिन वो ऑटो वाला कहीं नहीं था । मैं निराश हो कर वही रुक गया । कितने प्यार से मैने तिवारी सर के लिए गोदान किताब खरीदी थी सोचा था की सर को भेंट करूंगा तो वो कितने खुश हो जायेंगे । पर सब गड़बड़ हो चुका था । मैं इतना लापरवाह कैसे हो सकता हूं । कल को मेरे दोस्तो को अगर पता चला कि मैं इस तरह से तिवारी सर से मिलने गया था तो मुझे कितना बुरा लगेगा । एक पल को लगा कि तिवारी सर से बिना मिले वापस चला जाऊ । लेकिन इतनी दिनों से जिस दिन, क्षण और जगह की मैं कल्पना कर रहा था मैं ठीक वही था । एक शिष्य अपने गुरु के पास खाली मिलने जाए वो भी इतने सालो के बाद ये खयाल ही मुझे अंदर से झकझोड़ रहा था । मैं अपने कदम वापस लेने वाला था की तभी पीछे से एक वृद्ध व्यक्ति की धीमी सी आवाज़ मेरे कानों पे पड़ी … To be continued….।