“ तनुजा उठ जाओ आठ बज गए हैं “ विक्रम जब तक ये लाइन हर सुबह नहीं बोलता तब तक तनुजा अपने बिस्तर से नहीं उठती । विक्रम तनुजा का परमनेंट अलार्म था जो तनुजा के दिए गए इन्स्ट्रक्शन के अकोर्डिंग ठीक आठ बजे तनुजा को उठा देता । एक सरकारी विभाग में काम करने वाला विक्रम ठीक वैसा ही था जैसे हर छोटे शहर का एक पढ़ा लिखा वयस्क इंसान होता हैं और दिखता हैं । शांत रह कर और सुबह जल्दी उठकर अपना काम करने वाला विक्रम तनुजा से बिलकुल अलग था । विक्रम और तनुजा की शादी को एक साल हो चुके थे । “………………………………………विक्रम तनुजा के पापा के साथ स्टेट पेन्शन डिपार्टमेंट में काम करता था और तनुजा के पापा किसी जमाने में विक्रम के पापा के साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते थे । विक्रम की सादगी और ईमानदारी को देखकर तनुजा के पापा को लगा की तनुजा की तूफ़ानी ज़िंदगी में विक्रम एक ठहराव लेकर आएगा । वो अपने retirement से पहले पहले तनुजा की शादी विक्रम से कर के निश्चिंत हो जाना चाहते थे । विक्रम के घर वाले इस रिश्ते से बहोत खुश भी थे । तनुजा MASS COMM की पढ़ाई कर रही थी और ज़िंदगी को हर पल जी लेने में यक़ीन रखती थी । विक्रम से शादी की बात जब तनुजा को पता चली तो तनुजा ने अपने पापा को तो कुछ नहीं कहा लेकिन अगले दिन विक्रम के नम्बर पे तनुजा का एक SMS आया की वो ये शादी नहीं कर पाएगी क्यूँकि वो उससे प्यार नहीं करती । विक्रम ने इस बात का ज़िक्र किसी से नहीं किया और चुप चाप शादी से मना कर दिया । विक्रम ने एक बात तनुजा को नहीं बतायी की वो उसको मन ही मन बहुत पसंद करता हैं और उसकी ज़िंदगी में तनुजा का आना किसी ताजी हवा के झोंके की तरह होगा । विक्रम की क़िस्मत कमरे की टेबल पे पड़ी उस पुरानी किताब के पन्नो की तरह थी जो खिड़की से आने वाली हवा से बस थोड़ा सा फड़फड़ाना के रह गया था । नामुमकिन था स्मार्ट फ़ोन पे चलने वाली उँगलीयो और कलम उठा के कोरे काग़ज़ पे लिखने वाली उँगलीयो के बीच किसी भी तरह का स्पर्श होना …………………………………।” तनुजा के उठने से पहले विक्रम ने इत्मिनान से चाय बनायी ,अपने और तनुजा के लिए नाश्ता बना के ऑफ़िस के लिए तैयार होने लगा । समय से पहले काम को करने में विक्रम ने स्नातक कर रखी थी । उसे रोज़ यही काम करना होता था । उसे रोज़ यही काम करना अच्छा भी लगता था । वहीं इसके उलट घर से तीन kilometer की दूरी पे एक क्रीएटिव मीडिया कम्पनी में काम करने वाली तनुजा नौ बजे हर रोज़ हाँफती हुई जल्दी बाज़ी में अपनी ऑफ़िस की लिफ़्ट चढ़ती । दिन भर काम कर के ऑफ़िस के बाद तनुजा और विक्रम एक कॉमन मीटिंग point पे मिलते । महीने के शुरुआत में घर ग्रहस्थी की सारी ज़रूरी चीजों की लिस्ट बना के मार्केट से सारा सामान दोनो लेकर घर आते । दोनो घर की एक एक चीज़ अपनी जगह पे इस तरह से सुंदर और सफ़ाई के साथ रखते जैसे किसी ने अपना पहला प्रेम पत्र सहेज के पन्नी में रखा हो । विक्रम और तनुजा रसोई घर में रखे चीनी और चायपत्ती की तरह थे जो अपने अलग अलग डब्बे में रहते । पर उनका मिलना तभी होता जब चाय बनती । दोनो एक ही बिस्तर पे सोते लेकिन दोनो के बीच एक अदृश्य सी टेढ़ी मेढ़ी रेखा खिंची थी जिसे कम से कम विक्रम पार नहीं करना चाहता था । जिस तिरस्कार को विक्रम ने कुछ साल पहले सहा था । उसी तिरस्कार के बारे में सोच के वो तनुजा के क़रीब आने से डरता था । उसके अंदर खुद के पुराने होने पे एक रोष था एक पुरानी बात का अफ़सोस था । संगमरमर के किसी बड़े से टुकड़े को तोड़ के उससे कुछ नया और अधिक सुंदर बना सकते हो पर टूटे हुए दिल के साथ ये सम्भव नहीं होता । विक्रम दिल का बुरा नहीं था अच्छा था पर वो तनुजा के साथ एक अजनबी की तरह अच्छे से रह रहा था । तनुजा थी तो आख़िर एक औरत ही । उसे विक्रम का इस तरह से दूर दूर रहना दुःख देने लगा था । तनुजा विक्रम की ग़ायब मुस्कान की खोज में लगी रहती । वह विक्रम के लिए शाम को ऑफ़िस से जल्दी आकर कभी ढोकला तो कभी पास्ता बना के रखती । बाथरूम में गीज़र विक्रम के घुसने से पहले ऑन कर के रख देती । तनुजा वो सब करती जो उसे लगता की उसे करना चाहिए । लेकिन विक्रम अभी भी पुरानी बात को दिल में लिए पूरे घर में इधर उधार घूमता रहता । वो हर सुबह आठ बजे तनुजा को उठाने के लिए कमरे के बाहर से आवाज़ तो देता “तनुजा उठ जाओ आठ बज चुके है “ पर उसे हर रोज़ यही लगता की तनुजा उठ के बोलेगी की “ विक्रम मुझे माफ़ कर दो“ विक्रम अनजाने में ही लेकिन तनुजा की माफ़ी का भूखा हो चुका था । एक मनाही ही तो मिली थी उसे । एक ना मिला था उसे जो की लगभग वाजिब ही था । एक पढ़ी लिखी लड़की का किसी अनजान या थोड़े से जान पहचान वाले लड़के से शादी करने से मना कर देना कहीं से ग़लत तो नहीं था । तनुजा के ऑफ़िस में एक हफ़्ते की छुट्टी होने वाली थी । छुट्टी क्या थी वर्क फ़्रम होम वाला वीक था जिसमें तनुजा ने घर पे रहकर विक्रम से बात करने का मन बना लिया था । पूरे दिन में सिर्फ़ एक बार सुबह में वो पल आता जब विक्रम तनुजा को उसका नाम लेकर बुलाता था । ऑफ़िस नहीं जाने पर तनुजा हर रोज़ इस बात को मिस करने लगी थी । अपने नाम को विक्रम की आवाज़ में ना सुनना उसे ऐसा लगता की जैसे किसी मशहूर गायक ने गाना छोड़ दिया हो । किसी लेखक ने लिखना छोड़ दिया हो । उस दिन तनुजा सुबह सुबह विक्रम से पहले तैयार हो चुकी थी । आज नीले रंग की साड़ी में तनुजा बारिश के बाद वाला आसमान लग रही थी । फ़ोरम मॉल से ख़रीदा हुआ लेटेस्ट पर्फ़्यूम की महक पूरे घर को आधुनिक बना रहा था । पर्दों के बीच लगे विंड चाइम पक्षियों की तरह चहचहा रहे थे । सुबह का नाश्ता विक्रम के ऑफ़िस टाइम से पहले लग चुका था । वो बेसबरी से विक्रम का टेबल पे इंतेज़ार कर रही थी । अपने लम्बे नाखून को सागवान के चकोर डाइनिंग टेबल के कोने को खुरेदते हुए तनुजा टुकड़ों टुकड़ों में कुछ सोच रही थी । तनुजा के नाखून पे लगे शुगर के नीले नेल पेंट से ख़ुशबू झड़ के फैल रही थी । अगर गौर से विक्रम ने तनुजा को कभी देखा होता तो अभी तक उसे अपनी बेबक़ूफ़ी पे ग़ुस्सा आ रहा होता । पलंग पे रखा हुआ साफ़ रूमाल और बटुआ देखकर विक्रम भाँप चुका था की आज तनुजा उससे वही सवाल करेगी जिसका जवाब विक्रम खुद ढूँढ रहा था । अगर आज विक्रम अपने मन की बात तनुजा को बता दे तो तनुजा की ज़िंदगी की पहेली यहीं अभी के अभी सुलझ जाएगी । तनुजा विक्रम को ब्रेड का टुकड़ा खाते ऐसे देख रही थी जैसे वो ना जाने कितने दिनो से खुद भूखी हो । पिछले कई दिनो से तनुजा ने अपने मन में विक्रम के शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर होने तक की बात सोच चुकी थी । बस वो एक बार विक्रम के मुँह से उसकी मजबूरी या कमजोरी जो कुछ भी हो वो सुनना चाहती थी । विक्रम ने शाम को देर से आने की बात कहकर तनुजा को उसकी सोच से जगाया । तनुजा जब तक कुछ कहने के लिए शब्द जोड़ पाती , विक्रम तेज़ी से सीढ़ियों पे था । आज विक्रम ऑफ़िस में ऐसे काम कर रहा था जैसे उसका दफ़्तर में आख़री दिन हो । लंच बॉक्स टेबल पे पड़ा था । विक्रम की भूख मार चुकी थी । उसे लग रहा था की अगर वो लंच बॉक्स को खोलेगा तो उसमें से तनुजा के कई सवाल निकलेंगे । एक बजने को थे । पीछे से किसी की एक पुरानी सुनी हुई आवाज़ विक्रम के कानो पे पड़ी । “बेटा विक्रम कैसे हो ?” विक्रम ने देखा की सफ़ेद हाफ़ शर्ट पहने गोल ऐनक लगाए तनुजा के पापा उसके पास चले आ रहे हैं । विक्रम के दिमाग़ में पुरानी बातें रील की तरह चल पड़ी । उसे कुछ सोचता देख तनुजा के पापा ने उसके कनिष्क उँगली को स्पर्श करते हुए कहा :- “ क्या सोच रहे हो बेटा , तुम ठीक तो हो “ विक्रम हरबड़ा कर उठा और उनके पैर छुए । उनसे आने का कारण पूछा तो उन्होंने लाइफ़ सर्टिफ़िकेट जमा करने की बात बतायी । ऑफ़िस और काम बात चल पड़ी तो वक्त का अंदाज़ा ही नहीं रहा । चाय का आग्रह करने पे तनुजा के पापा ने देर हो जाने की बात कहीं । वो चलने को हुए तो विक्रम खुद को रोक नहीं पाया पूछने से “ तनुजा कैसी हैं ?“ “ अच्छी हैं अब तो…….(थोड़ा रुक कर) बाहर कार में अपने बेटे से साथ बैठी हैं । तुम्हें तो पता ही होगा की दिवाली पे रोहित (तनुजा के पति) की death हो गयी थी । मैंने तो चाहा था बेटा की तनुजा की शादी तुमसे हो जाती लेकिन उसकी ज़िद थी की वो शादी अपने कॉलेज फ़्रेंड रोहित से ही करेगी । भाग्य भी अजीब होता हैं बेटा ,लेकिन क्या करे आख़िर जीना तो है ही ।” “अच्छा चलता हूँ “ विक्रम की जैसे जान निकल गयी हो । उसे कुछ खबर ही नहीं थी । लेकिन लगभग पाँच सेकंड के अंदर उसे अपने अंदर एक ख़ुशी दिखने लगी । जिस लड़की ने विक्रम को शादी के लिए मना किया था उसका घर उजड़ गया था । जिसने विक्रम को बिना देखे तिरस्कार किया वो लड़की विधवा हो गयी थी । विक्रम निर्लज होकर मन ही मन मुस्कुरा रहा था । विक्रम अपनी जीत के बारे में चीख चीख के पूरे ऑफ़िस को बताना चाह रहा था । तनुजा के पापा को अपने बूढ़े कदमों से ऑफ़िस के बाहर पार्किंग की तरफ़ जाते हुए देखना सुखद था । एक पुरुष की जीत दर्ज हुई । दुनिया की हर लड़की जो एक सरकारी नौकरी और ईमानदार लड़के को ना करे उसके साथ यही होना चाहिए । विक्रम को बहोत ज़ोरों की भूख लगी । तीन साल पहले हुई एक छोटी सी घटना में खुद की हार देखने वाले विक्रम मैट्रिमोनीयल साइट पे जाकर सिर्फ़ तनुजा नाम की लड़की को सर्च करने लगा था । वो सिर्फ़ एक ही नाम की लड़की से शादी करना चाहता था ताकि वो अपनी जीत महसूस कर सके । उसे बस सनक सवार थी । फिर दो साल के बाद उसे मेरठ में रहने वाली एक लड़की तनुजा से दोस्ती हुई और फिर शादी……।