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Chapter 3 :

सोनार बांगला

मेरा शहर कोलकाता एक एसा शहर हैं जहां हर कोई एक बार जरूर जाना चाहता हैं । इसे सिटी ऑफ जॉय के नाम से जाना जाता हैं । मेरे जीवन में इस शहर का एक अलग ही स्थान हैं । बात हैं 2002 के आस पास की जब मेरे पिता वहां रेलवे में कार्यरत थे । हमलोग बड़ा बाजार एरिया में किराए के मकान में रहते थे । मैं , पापा और मेरी मां हम तीन लोगो की छोटी सी फैमिली । मैं उस वक्त केंद्रीय विद्यालय में क्लास नाइन में पढ़ता था । पापा का दफ्तर हावड़ा स्टेशन के एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट में था । मैं सुबह रोज अपने पापा को बड़ा बाजार ट्राम लाइन के पास से हावड़ा के लिए बस पकड़ते हुए देखता था । बस की टाइमिंग सुबह 9.15 की थी तो उस वक्त ऑफिस आने जाने वाले का हुजूम बस में लगा रहता था । जब स्कूल की छुट्टियां होती तो कई बार मैं खुद पापा के साथ उनके ऑफिस हावड़ा चला जाता था । हावड़ा ब्रिज पे रोजाना लाखों लोग अपने काम और रोज़गार के सिलसिले में पैदल आते जाते थे। उस दौरान मुझे पता चला कि हावड़ा ब्रिज कोलकाता और हावड़ा जो की दो अलग अलग शहर हैं उसको जोड़ती हैं । हावड़ा ब्रिज के नीचे हुगली नदी बहती हैं जो की ब्रिज पे पैदल चल रहे हजारों लोगों का अभिनंदन किया करती थी । ब्रिज के नीचे नदी में कई सारे बड़े छोटे पानी वाले जहाज चलते रहते थे । एक दिन पापा के ऑफिस में कोई फंक्शन था इसलिए मैं सुबह सुबह नहा धोकर अच्छे कपड़े पहनकर उनके साथ जाने के लिए तैयार था । मेरी मां को पता था की पापा के ऑफिस में आज काफी कुछ अच्छा खाने को मिलेगा इसलिए मां ने भी मुझे रोका टोका नहीं । वैसे उस दिन मेरी स्कूल की छूटी नहीं थी पर फिर भी मैंने पापा के साथ उनके ऑफिस जाने का मन बना लिया था । सुबह जैसे ही हम लोग बस के लिए बस स्टॉप की तरफ निकले की हमे पता चला कि आज बस की स्ट्राइक हैं । अब मेरा मूड ऑफ हो चुका था । मैने कितने सपने देख लिए थे कल रात से लेकर सुबह तक और सब बेकार होते दिख रहे थे । मैने पापा की तरफ मायूस होकर देखा तो वो किसी से सड़क के किनारे बात कर रहे थे । वो दास दादा थे हमारे पड़ोसी । वो दोनो शायद बात कर रहे थे की बस की स्ट्राइक कब तक रहेगी । मुझे उनके बात करने के ढंग और चेहरे पे बन रहे भाव से ये साफ समझ आ रहा था की आज बस नहीं चलने वाली हैं । मैने सोच रहा था कि आखिर मेरे साथ ही एसा क्यों हुआ । मेरे स्कूल का दोस्त मनोज तो जब भी अपने पापा के दफ्तर जाता हैं तो वो ढेर सारे गिफ्ट लेकर अपने पापा के स्कूटर पे बैठ के आता हैं । हमारे पास तो स्कूटर भी नही था। पापा क्या इतने कम कमाते हैं ? हमारे पास स्कूटर क्यों नहीं हैं ? अगर होता तो मैं पापा के ऑफिस में पार्टी कर रहा होता और फिर मिठाई के पैकेट के साथ घर वापस आता । पर एसा कुछ भी नहीं होने वाला था और पापा अभी भी दास दादा से बात कर ही रहे थे । अगर पापा दास दादा का स्कूटर एक दिन के लिए उधार मांग लेते तो हम लोगो का फंक्शन मिस नहीं होता । पर मुझे पता था की पापा कुछ भी कर ले दास दादा से मदद नहीं मांगेंगे । पिछले महीने बाज़ार से हम और पापा सब्जी का भारी थैला लिए घर की तरफ आ रहे थे । दास दादा ने अपने स्कूटर पे बैठने का ऑफर भी दिया था पर मेरे ग्रेट पापा ने उनकी बात नहीं मानी । मैं गुस्से में पैर पटक रहा था पर उन्होंने एक न सुनी । मुझे आज भी पापा पे और उससे ज्यादा कोलकाता के बस यूनियन पे गुस्सा आ रहा था । वो चाहते तो अपनी स्ट्राइक एक दिन बाद रख लेते कम से कम हमारी पार्टी तो बेकार नहीं जाती । अचानक से मैने पापा को अपनी ओर आते हुए देखा । मैं घबड़ा गया । मुझे लगा कि पापा अब आकर बोलेंगे की चलो घर चलते हैं । अब कुछ हो नहीं सकता । लेकिन पापा ने पास आकर मेरा हाथ पकड़ा और पैदल चलने लगे । मुझे समझ में नहीं आ रहा था की क्या हो रहा हैं । मैं पापा से साथ खूब चला लगभग 2 किलोमीटर । मेरे कपड़े पसीने से भीग चुके थे । थोड़ी देर में हम दोनो हावड़ा ब्रिज के नीचे फेरी स्टेशन पे थे । पापा ने मेरी तरफ देख के कहा कि तुमने फेरी से कभी यात्रा नहीं की हैं ना । चलो आज इसी से चलते हैं । मेरी खुशी का कोई ठिकाना नहीं था । मैं फेरी से हुगली नदी को क्रॉस कर रहा था पर मन ही मन आसमान में उड़ रहा था । ये मेरे लिए अदभुत था । किसी चमत्कार से कम नहीं । मैने मन ही मन खुद को और पापा को कितना कुछ कह रहा था । मैं कितना गलत सोच रहा था । भले ही मेरे पापा के पास स्कूटर नहीं था पर उन्होंने मुझे कभी भी इसकी कमी महसूस नहीं होने दी । मैं पापा का हाथ कस कर पकड़ के नदी को धारा को देख रहा था । तेज हवाओं से हम दोनो के बाल फर फर कर के उड़ रहे थे। पापा ने मेरी तरफ देखा और मुस्कुरा के पूछा अब खुश ? मैने अगले दिन अपने स्कूल में फेरी वाली घटना अपने सारे दोस्तो को बताई । मनोज को भी बताई । मैने उसे बताया कि स्कूटर से कई गुना मजा फेरी से यात्रा करने में आता हैं । उस घटना को करीब 20 साल हो चुके हैं । कई बार फेरी से सफर कर चुका हु । पर पापा के साथ का वो दिन मैं आज भी याद कर के खुश होता हूं । पापा अब नहीं रहे पर जब भी फेरी से सफर करता हूं तो एसा लगता हैं की हावड़ा ब्रिज में खड़े खड़े वो मुझे देख थे हैं । मेरे दिल के करीब मेरा शहर कोलकाता ।