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Chapter 2 :

तिथि

हमारी जिंदगी में तिथि के कई रूप होते हैं | स्कूल में कॉपी के ऊपर दाहिने कोने पे लिखी जाने वाली तिथि , marksheet पे लिखी हुई जन्मतिथि ...और ठीक उसी तरह उस दिन की 'तिथि' जब मैं और 'तिथि' दोनो ने मिलने का प्लान बनाया पहली बार | 6 महीने तक सोशल मीडिया पे अपने पर्सनल , पोलीटिकल और ज्योग्राफिकल ख्यालो को शेयर करने के बाद हमदोनो इस निर्णय पे पहुचे थे की अब हमें एक दुसरे से मिलना चाहिए | आज के वक्त में भी हम दोनो ओल्ड स्कूल वाले प्यार की आस लगाए एक दूसरे से मिलना चाहते थे । मैं सुबह 10 बजे से ही तैयार होकर उसके कॉल का इंतज़ार कर रहा था | आज तक हमने एक दुसरे को सामने से नहीं देखा था | उस दिन हमारी पहली ब्लाइंड डेट थी लेकिन डेट पे कहाँ जाना हैं ये मुझे पता नहीं था | हम दोनों इस डेट को पूरी तरीके से ब्लाइंड नहीं कह सकते थे | इस डेट पे हम उस ओल्ड कपल की तरह थे जिनकी आँखों की रौशनी लगभग जा चुकि हो पर एक दुसरे को एक दुसरे की खुशबू से पहचानते हैं और छू के महसूस करते हैं | हम दोनों एक दुसरे को बूढ़े होकर मिलना चाहते थे | करीब सबा दस पे उसका मैसेज आया की उसने कैब भेज दी हैं और मुझे चुप चाप उसमें बैठ जाना हैं | मुझे उसका ये अंदाज़ पुरानी हिंदी फिल्मों की तरह लग रहा था जिसमे बिना कुछ बताये आँखों में पट्टी बांध के हीरो को सुनसान इलाके में बुलाया जाता था | जयपुर में बचपन से रहने के बावजूद मुझे उस दिन शहर की सड़के और गलियां अलग सी लग रही थी । क्युकी मैं तो मन ही मन प्यार की गलियों में टहल रहा था । मन में तरह तरह के चित्र बन रहे थे । हो रही हल्की बारिश से वो चित्र बार बार मिट जाते । करीब पंद्रह मिनट के बाद उसकी भेजी हुई कैब ने मुझे जयपुर के जंतर मंतर के सामने खड़ा कर दिया | बिलकुल ठीक , जो ख्याल आपके मन में अभी आ रहा हैं वही मुझे भी उस वक़्त आया की ये कौन सी जगह होती हैं किसी के साथ डेट करने की | एंट्री गेट पे वो मेरा इंतज़ार कर रही थी | हाथों में दो एंट्री टिकट लिए | यैसे लग रहा था जैसे किसी सिनेमा हॉल के बाहर वो मेरा इंतज़ार कर रही हो | हम दोनों एक दुसरे के सामने खड़े थे अपने अपने awkwardness के साथ | ख़ामोशी को पकड़ के हम दोनों जन्तर मंतर के अन्दर पहुचे | इससे पहली बार मैं यहाँ कई बार बचपन में अपने नाना जी के साथ आया करता था | इससे पहले की मैं उससे पूछता की हम यहाँ क्यों मिल रहे हैं कहीं और क्यों नहीं , उसने मुझे बताया की ये जंतर मंतर उसे बचपन से कितना पसंद और कितना fascinating लगता हैं | उसने मुझे बताया की यहाँ यैसे यंत्रों का समूह हैं जिनसे खगोलीय पिंड अर्थात celestial objects की स्थिति observe कर के तिथि निर्धारित की जाती हैं | ग्रह नक्षत्र कैसे अपने अपने घरो से निकलते हैं और दुसरे घरों में प्रवेश करते हैं | ज्योतिष का ज्ञान , मौसम का सटीक अनुमान और धुप की लम्बाई से वक़्त नापने की विधि | इतना सब कुछ उसने कुछ मिनटों में मेरे सामने रख दिया | उसे राशियों का भी ज्ञान था | उसे घटनाये घटित होने का scientific reason जानना बेहद पसंद था | मैं अवाक था | मुझे एक पल को लगा की मैं किसी ज्योतिषी के सामने हूँ | 1734 में जयपुर के राजा जयसिंह ने ये जंतर मंतर वेधशाला बनायी थी ताकि आने वाली पीढ़ी इस विज्ञान को समझ सके | पर उस दिन दो इंसान एक दुसरे को समझने के लिए वहां पहुचे हुए थे | मैं एक यैसे डेट पे आया था जहाँ मेरी पार्टनर मुझे यह बता रही थी की एक्चुअल में डेट क्या हैं | तिथि कैसे निर्धारित होती हैं | मुझे किसी से मिलना , प्यार हो जाना एक संयोग लगता था पर उससे मिलकर मुझे ये पता चला की जैसे रिश्तों पे समय की धुप का असर होता हैं वैसे ही हमारी जिंदगी पे ग्रह नक्षत्रों का भी असर होता हैं | घर की दीवारों पे टंगे हुए ठाकुर प्रसाद के पंचांग यु ही नहीं छपते उनके पीछे कई सौ सालो का इतिहास और विज्ञान हैं | मेरे लिए पूनम और अमावस की चाँद साहित्य की किताबों के सबसे प्रिये शब्द थे तो वहीँ उसके लिए ये physics की किताब का सबसे पसंदीदा chapter | मुझे समझ आ गया था की वो जिंदगी की प्रयोगशाला में full marks लाने वाली लड़की हैं और मैं हिंदी की क्लास में प्रेमचंद की किताब पढने वाला एक मामूली लड़का | मुझे वो अच्छी से ज्यादा अलग लगी | उसका खुद की पसंद को दिखाने का तरीका मुझे बेहद पसंद आ गया था | उस दिन अपना राशिफल पढ़ा नहीं था मैंने पर मेरी राशि में निः संदेह उसी का योग था | मेरे शुक्र में उसके चंद्रमा का प्रवेश हो चूका था | मुझे प्यार होने का अनुमान लग गया था |