मंजू आज बहुत खुश थी इतनी खुश कि ठिठुरती सर्दी में वो उत्साह की गर्माहट से भर गयी थी। और हो भी क्यों नहीं, आज उसे अपने स्कूल के लिए नया स्वेटर आखिरकार मिल ही गया था। पर वो इतनी आसानी से नहीं मिला था। महीनों की ज़िद तो कभी मनुहार का फल था। आठ लोगों का एक निम्न मध्यमवर्गीय, कामकाजी परिवार होने के कारण पैसे की हमेशा तंगी रहती थी। और उसके ऊपर, उसके पिता के सबसे बड़े होने के नाते, उनकी बहनों की जिम्मेदारी भी उन्हीं की थी। नया स्वेटर मिलना उसके लिए बहुत बड़ी बात थी। उसका पुराना स्वेटर जो उसकी बहन का था, अब उसके लिए छोटा पड़ने लगा था। ये नया स्वेटर मंजू की मां ने खुद बुना था। उसने स्वेटर पहना तो उसका चेहरा और खिल गया। पूरे घर में इठलाती फिर रही थी। माँ पर नज़र पड़ते ही चहक उठी। 'थैंक्यू, थैंक्यू, थैंक्यू माँ!' 'अच्छा लगा ?' 'हाँ, माँ। बहुत! इसका पीला रंग कितना प्यारा है। और ये सफ़ेद बूटी तो एकदम मस्त।' उसने माँ को गले लगाते हुए कहा। अगली सुबह मंजू अपनी माँ से भी पहले उठ गयी| घर में बिल्कुल शांति थी और बाहर कोहरा छाया हुआ था , इसके बावजूद वह उठके अपना स्वेटर पहन के शीशे में खुद को निहार रही थी, जब माँ कमरे से बहार आई। माँ ने मंजू को प्यार से निहारा और मुस्कुरा कर रसोई में चली गयी। उस दिन जब मंजू स्कूल के लिए निकली तो सर्द हवा के थपेड़े इतने सख़्त नहीं थे। खाली सड़क पर वो तेज़ कदमों से ऐसे चल रही थी मानो उसके पैरों में स्प्रिंग लग आए हों। उसे स्कूल जल्दी पहुंचना था।आखिर उसे अपने सभी दोस्तों को स्वेटर जो दिखाना जो था। वो उस दिन स्कूल में प्रवेश करने वाली पहली लड़की थी। उसकी बड़ी-बड़ी आंखें स्कूल के गेट पर ही टिकी थीं| भागते हुए वह स्कूल के गेट को पार करके मैदान में पहुंची | बच्चों ने आना बस शुरू ही किया था | खुले मैदान में खड़े होके वह अपने दोस्तों के आने का बेसब्री से इंतज़ार कर रही थी | उसका पीला स्वेटर उसके गोरे रंग पर खूब फब रहा था | बिलकुल सूर्यमुखी की तरह चमक रही थी | जब उसकी सबसे प्यारी दोस्त स्कूल के प्रांगण में दाखिल हुई तो मंजू की आँखें चमक उठीं। अपने चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट लिए, वो उसकी तरफ़ बढ़ी। जैसे वो चाहती हो कि मिनी उसके नये स्वेटर को खुद नोटिस करे | 'मिनी, देखो मेरा नया स्वेटर!' 'मेरी माँ ने इसे मेरे लिए बनाया है!' उस दिन पहला पीरियड इंग्लिश का था। मधु मैम क्लास में आयी तो उनकी नजर सबसे पहले मंजू पर गयी। 'अरे वाह, मंजू। आज तो बड़ी प्यारी लग रही हो और तुम्हारा तुम्हारा स्वेटर भी बहुत सुन्दर है।' 'धन्यवाद मैम, मेरी माँ ने इसे मेरे लिए बनाया', मंजू मुस्कुराई जब उसकी मधु मैडम ने जटिल रूप से बुने हुए स्वेटर की सराहना की। कक्षा शुरू हो चुकी थी जब मंजू की नजर रश्मि पर गयी। वो आज सबसे पिछली सीट पर, सिमटी सी बैठी थी। 'अरे, रश्मि को तो मैंने अपना स्वेटर दिखाया ही नहीं!' मंजू ने सोचा और फिर आगे मुड़कर अपने नोटबुक में लिखने लगी। टिफ़िन की घंटी बजी तो सारे बच्चे मैदान में आ गए। धूप आज मद्धिम थी। मंजू टिफ़िन लेकर क्लास से बाहर आयी तो उसने देखा कि रश्मि कॉरीडोर की सीढ़ी पर अकेली बैठी है। मंजू जाकर उसकी बगल में बैठ गयी। 'ये देखो रश्मि, मेरा नया स्वेटर! कैसा है?' 'यह वास्तव में अच्छा है,' रश्मि ने धीरे से कहा। रश्मि स्वभाव से शांत थी, लेकिन मंजू ने महसूस किया कि वह आज ज्यादा खोई हुई थी। फिर अचानक मंजू का ध्यान रश्मि की यूनीफ़ॉर्म पर गया।आज उसने स्वेटर भी नहीं पहना हुआ था, जबकि बाहर का तापमान 12 डिग्री था। मंजू की माँ ने उसे दूसरों के मामलों में दखल न देने के लिए कहा था, लेकिन फिर भी मंजू उससे पूछने से खुद को रोक नहीं पाई। 'रश्मि क्या हुआ, तुम्हारा स्वेटर कहाँ है?' 'मेरे पास... मेरे पास स्वेटर नहीं है,' रश्मि ने थर्रायी सी आवाज़ में कहा। 'क्यों?' 'मेरी माँ ने मेरे भाई को दे दिया, उसका स्वेटर फट गया था।' 'फिर तुम्हारा क्या?' 'माँ ने कहाँ में बड़ी हूँ ना। ' 'हैं ? बड़ो को क्या ठंड नहीं लगती ?' मंजू कभी भी सही बोलने से पीछे नहीं रहती थी. रश्मि बस मंजू को देखती रही, कुछ कह ना पायी। 'तुम्हें अपनी माँ से तुम्हारे लिए एक स्वेटर बनाने के लिए कहना चाहिए।' एक असहज चुप्पी के बाद रश्मि ने कहा, 'अभी हमारे पास पैसे नहीं हैं।' टिफ़िन का समय खत्म हुआ तो दोनों क्लास में वापस आ गयीं,, लेकिन अब मंजू पहले की तरह खुश नहीं थी। उसका सारा उत्साह गायब हो गया था। उसे अपनी दोस्त रश्मि की फ़िक्र सताने लगी थी। मंजू के पिता हमेशा कहते थे कि चीज़ें साझा करना अच्छी बात थी। तो क्या उसे अपना स्वेटर रश्मि को दे देना चाहिए? मंजू के मन में तरह-तरह के ख़याल उमड़ने-घुमड़ने लगे थे।, लेकिन यह स्वेटर उसे पसंद आया था और महीनों के इंतजार के बाद उसे मिला था। यह उसका पहला नया स्वेटर था, इससे पहले तो वह उसने सारे दीदी के छोटे स्वेटर ही पहने थे। वो पुराना स्वेटर पहन सकती थी पर वो सिर्फ पुराना ही नहीं, छोटा भी था। तो क्या मैं अपना पुराना स्वेटर रश्मि को दे दूं? इस सर्दी के मौसम में पुराना स्वेटर होना तो स्वेटर ना होने से बेहतर था। मंजू ने सोचा। लेकिन क्या ये धोखा होगा ना, वह भी तो नया लेना चाहेगी ... इस तरह के विचारों ने उसे उस दिन पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने से रोक दिया। स्कूल समाप्त हुआ और सभी मुख्य द्वार की ओर चल पड़े। 'रश्मि, रुको!' मंजू ने आवाज़ लगाई। 'क्या तुम्हें मेरा नया स्वेटर पसंद आया?' 'हाँ, बताया तो था, मंजू। कितनी बार पूछेगी ?'रश्मि थोड़ा खीज कर बोली। 'तो तुम इसे रख लो।' मंजू ने अपने नये स्वेटर को रश्मि की ओर बढ़ाते हुए कहा। 'क्यों?' रश्मि अचंभित रह गई। 'नहीं, नहीं, मैं इसे नहीं ले सकती, मेरी मां मुझे डाटेंगी।' 'उनसे कहना कि ये स्वेटर तुम्हें मेरी माँ ने दिया है।' रश्मि नया स्वेटर पाकर खुश हुई, उसने मंजू को धन्यवाद दिया और स्वेटर ले लिया। (आज पूरे दिन में रश्मि के चेहरे पर पहली बार मुस्कुराहट आई थी।) मंजू ठंड में कांपते हुए घर पहुंची तो मां आंगन में ही थी। मंजू को देखते ही उन्होंने हैरानी से पूछा, 'तुम्हारा स्वेटर कहाँ है?' 'वो...वो मैं उसे स्कूल में ही भूल आई,' मंजू ने कहा और तेजी से अंदर चली गयी।। उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी माँ को कैसे बताए कि उन्होंने जो स्वेटर बनाया था, वह उसने किसी को दे दिया था। मां तो पक्का डाँटेगी। उसने सोचा। अगले दिन मंजू अपना पुराना स्वेटर पहन कर स्कूल गयी। उस दोपहर भी जब वो अपना नया स्वेटर साथ नहीं लाई, तो उसकी माँ को यकीन हो गया की कुछ गड़बड़ है। 'मंजू, इधर आओ।' मंजू तो जानती थी कि माँ क्या पूछने वाली थी। वो सुस्त कदमों से उनकी ओर बढ़ी। 'क्या हुआ? स्वेटर कहाँ है? क्या आपने इसे कहीं खो दिया?' 'नहीं।' 'फिर क्या हुआ?' 'मम्मा आप मुझे डांटोगी तो नहीं?' 'नहीं, बेटा।' माँ ने प्यार से मंजू के कंधे पर हाथ रखा। 'मुझे बताओ क्या हुआ।' 'मैंने स्वेटर रश्मि को दे दिया।' मंजू ने सिर झुकाकर, धीरे से कहा।' ‘कौन रश्मि?' 'वह मेरी कक्षा में है, वह आखिरी बेंच पर बैठती है। ऐसा नहीं कि वो मेरी सबसे अच्छी सहेली है,। लेकिन उसके पास स्वेटर नहीं था, और उनके पास खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। इसलिए मैंने अपना स्वेटर उसे दे दिया।' माँ ने बस अपने सात साल के बच्चे को देखा और मुस्कुरा दी। 'अब तुम क्या पहनोगी?' माँ ने पूछा 'मेरा पुराना वाला।' ''अच्छा, एक बात बताओ।' माँ ने मंजू को अपने बगल में बिठाते हुए पूछा। 'अपना नया स्वेटर किसी दूसरे को देते समय आपको बुरा नहीं लगा।'' 'लगा था , लेकिन फिर मैंने सोचा कि मेरे पास अभी भी एक और है इसलिए मैं इसे साझा कर सकती हूं। शेयर करना तो अच्छी बात होती है ना, माँ?' मंजू ने मासूमियत से कहा।' 'हां, होती है।' उसकी माँ ने ज़बाब दिया और नए स्वेटर के लिए ऊन ढूढ़ने लग गयी।