Autho Publication
qwWu7e77DwfxnWkdX8gXn8ciMwPTslC7.jpg
Author's Image

by

Anzar Alam

View Profile

Pre-order Price

199.00

Includes

Author's ImagePaperback Copy

Author's ImageShipping

BUY

Chapter 1 :

समझ रहा हूँ तुझे, थोड़ा समझना बाक़ी है

समझ रहा हूँ तुझे, थोड़ा समझना बाक़ी है, अभी ख़ुद के लिए जिया नहीं, अभी जीना बाक़ी है। चेहरे सुर्ख़ हो गए आखों में रास नहीं आयी, क्यूँकि अभी प्याले में थोड़ा जाम बाक़ी हैं। जमीं बंजर हो रही जान बची है अभी, ऐ रेत तू निराश ना हो, अभी बरसात आना बाक़ी हैं। मिट्टी कुरेद कर कुछ फूल लगाए हैं हमने, अभी तो गुलशन में ख़ुशबू आना बाक़ी हैं। बरसो लग गये तुझे समझने में ऐ ज़िंदगी, आ रहा हूँ अब मैं, अभी तेरा जाना बाक़ी हैं। क़दम क़दम पे रोका है तूने मुझे, गिर कर अभी उठा हूँ, अभी तो लड़ना बाक़ी हैं। तुझे लगा इतनी जल्दी हार मान लूँगा मैं, ऐ ज़िंदगी, अभी तुझसे हिसाब करना बाक़ी हैं। तुझे यक़ींन नहीं है ना, तो मत करो, लेकिन अभी मेरा तुझसे जीतना बाक़ी हैं।

Comments...