तेरी खुशबुओं को ये कहाँ कहाँ तलाशता रहा,
रूह में थी तू शामिल सारे जहाँ तलाशता रहा।
गुलों को छू के देखा सबा से तिरा पता पूछा,
बदन की तराश गुलों की क़बा तलाशता रहा।
गुलिस्तां फिर मुझसे अंदाज़े ख़लिश बोला,
तायर ए बहिश्त कहाँ कहाँ तलाशता रहा।
ज़मीं की फ़िज़ाओं में नहीं कहीं तू शामिल,
आसमानों की हर कहकशां तलाशता रहा।
नामुमकिन वस्ल सही दिल तो है मुंतज़िर,
जहा उम्मीद हुई हर वो मकाँ तलाशता रहा।