Autho Publication
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Amber Srivastava

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ग़ज़ल

अपने जलवों को यूँ लबे सड़क न बिखराया करो,

जब भी घर से निकलो हिज़ाब में तुम जाया करो। 

गुजरो जिस भी सिम्त महक जाती रहगुज़र भी, 
इतनी खुश्बू भी तुम गुलों से ना यूँ चुराया करो। 

आँखों से जो आंखे मिली दफ़्तन मुस्कुरा दिए, अब यूँ दिल में पैग़ाम के बिना तुम आया करो। 

उड़ती जुल्फों ने यूँ बिखर चाँद नुमायां कर दिया, देखो अब ऐसे रोज़ रोज़ ना तुम आया करो। 

कितनी मुश्किलों से अब हुए जाकर दरवेश देखो, रह रह कर यूँ मेरा इमान न डगमगाया करो।  

दिल जो मांगे बेलौस बेसबब तिरी नज़दीकियां, तुम यूँ शरमाते हुए मिरी बाहों में आया करो।

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