इन कहानियों का जन्म कब और कैसे हुआ यह भी एक लम्बी कहानी है। जीवन के कुछ वर्ष सर्वाधिक झंझावातों से भरे थे। उन अशांत पलों में कभी-कभी लगता था कि दुःखों के बादल सबसे अधिक काले और घनेरे मेरे ही भाग्य में हैं। तभी मेरा सचेत मन कल्पना करना आरम्भ कर देता कि दुःख और समस्याओं के बादल कितने और अधिक काले-घनेरे हो सकते हैं किसी अन्य के जीवन में। साथ ही अवचेतन मन उन काल्पनिक समस्याओं के समाधन भी ढूंढ लेता। मेरे सपनों में मन के ये दोनों ही रूप चल-चित्र की भांति स्पष्ट हो जाते, और मन के ये नए एहसास कलम के माध्यम से मेरी डायरी के पन्ने रंग जाते। ये कहानियाँ उसी समय की राख में दबी चिनगारियाँ हैं जो आपके समक्ष हैं। आप भी देखिये इन्हें सपनों के झरोखों से, गुज़रिये समय के उन गलियारों से और स्वयं अनुभव कीजिए परिस्थितियों की वह तपिश, वह कसक।