जीवन की जितनी भी व्याख्या की जाए कम है। कितनी भी परिभाषायें बनाई जाएं अध्ूरी रह जाती हैं। जीवन कोई सिक्का तो नहीं जिसके केवल दो ही पहलू हों। इसके तो अनगिनत आयाम हैं जो सीमाओं के कायल नहीं। क्या हम जी पाते हैं कभी भरपूर जीवन? जीवन के कितने ही रंग अनदेखे रह जाते हंै। जीवन के ये अछूते पहलू किसे, कब और कैसे चैंका देंगे भला बताया जा सकता है?