यह कहानी अनजाने में हुई हत्या के अपराध-बोध से मुक्ति की कहानी है. सत्या के हाथों अनजाने में गोपी की जान चली जाती है और सब यही समझते हैं कि दुर्घटना में उसकी मृत्यु हुई है. लेकिन सत्या हत्या के जुर्म के अपराध-बोध से छुटकारे के लिए गोपी के परिवार की आर्थिक सहायता करने निकलता है और गोपी के बच्चों, खुशी और रोहन को पास के एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के आगे लोगों से भीख मांगता देखकर वह दुख और ग्लानि में डूब जाता है. इस परिवार को बर्बादी से बचाने और अपने किए गये गुनाह की बीस साल की सज़ा भुगतने के लिए सत्या बस्ती में आकर रहने लगता है. वह गोपी के परिवार को आर्थिक रूप से संभाल लेता है. बच्चों को पढ़ा-लिखा कर उनका जीवन बनाने का गोपी का सपना पूरा करने का सत्या पर जुनून सवार हो जाता है. लेकिन शराब के नशे और आशिक्षा में जकड़े लोगों के बीच ढंग से बच्चों की पढ़ाई नहीं हो सकती है. गोपी की पत्नी मीरा बस्ती छोड़कर जाना नहीं चाहती है. तब सत्यजीत निर्णय करता है कि वह पूरी बस्ती का ही माहौल बदल कर रख देगा. लेकिन खुशी और रोहन की पढ़ाई में कोई रुकावट आने नहीं देगा. किंतु काफी चुनौतिपूर्ण है बस्ती का माहौल बदलना. पड़ोस की सविता, शराबी पतियों से त्रस्त और शराब के कारण पतियों की अकाल मृत्यु के बाद विधवा हो गई औरतों के साथ मिलकर सत्यजीत बस्ती में महिला सशक्तिकरण का ऐसा माहौल बनाता है कि पूरी बस्ती की काया-पलट हो जाती है. शराब का ठेका बंद हो जाता है. बस्ती के अन्य बच्चे भी पढ़ाई में जुट जाते हैं. सामाजिक और आर्थिक बदलाव की झलक बस्ती में दिखने लगती है. खुशी पढ़ाई में बहुत अच्छा करती है. लेकिन रोहन का पढ़ाई में मन नहीं लगता है. वह अक्सर सत्या को यह अहसास दिलाता रहता है कि वह उसका बाप नहीं है. लेकिन सत्या अपना फर्ज़ निभाने से पीछे नहीं हटता है. एक दिन इन्जीनियर बन गए रोहन को पता चल जाता है कि सत्या ही उसके बाप का क़ातिल है. इस परिवार के साथ अपनी ज़िंदगी के चौदह साल कुर्बान करने के बाद भी क्या सत्या को अपने अपराध-बोध से मुक्ति मिल पाती है?