फिर से कुछ ओस की बूंदों ने
नाहक साहस किया
बस टिके रहना है दूब पर ।
अब इन्हें कौन समझाए
सूरज के आगे भला टिका है कोई ।
हाँ, खूबसूरत थे वो क्षण
जब ओस की बूँदें थी
और सूरज की किरण पड़ती थी
सब कुछ सतरंगी था
खेल कुछ पल का
थोडा ही चाहे
अलौकिक, आनंदित था
फिर सहसा सब बिखर गया
जीवन के मेले में
वो जो सब कुछ था
जाने किधर गया ।