मेरे प्रभु, तुमको जान नहीं पाता हूँ
यूँ तो गहरे अंतरतम में तुमसे मिलने आता हूँ
और जितना आता हूँ पास, मैं खोता जाता हूँ
यह अविरल स्नेहिल तेरा दर्शन ऐसा क्यों है
खुद को पावन गंगा की धारा सा बहता पाता हूँ
तेरे सानिध्य में जाने जग का सारा पारावार
बूँद छोटी सी मैं, तुझको सागर सा पाता हूँ |