अध्याय 1 सुबह के छै बज गए है। पूरी रात बिस्तर पर करवट बदलते बदलते ही बीत गयी। धीरे से देखा लिपिका की तरफ , वो अभी तक बहुत गहरी नींद में सो रही है। एक बार मन किया कि जगा दू अब, फिर दूसरे ही पल लगा नहीं ,रहने दो ,शायद बहुत थकी हुई है। थोड़ा और सो लेने देता हूँ।मैं खुद भी थकावट महसूस कर रहा हूँ पर पता नहीं क्यों आँखों से नींद गायब है। बिस्तर में अजीब सी चुभन हो रही है। आखिरकार बिस्तर छोड़ के उठ ही गया। बच्चो के कमरों में देखने की कोशिश की तो वहा भी सन्नाटा पसरा हुआ है। सब गहरी नींद में सो रहे है। आज ही ऐसा हो रहा है, रोज यह नहीं होता है। और सब दिन तो सुबह सुबह की जल्दी ,सबके अपने अपने काम जो सूरज की पहली किरण के साथ ही शुरू हो जाते है। विचारों की इन्ही कश्मकश के साथ मैं सीधे किचन में गया और दो कप चाय बनाई। हाँ दो कप। दो कप क्यों ??? हा हा मेरे लिए दो कप चाय का मतलब , एक तो यह कि आप अकेले नहीं है और दूसरा यह की आपकी चाय परफेक्ट है। परफेट चाय मतलब अदरख की ज़रा सी कडुवाहट ,इलाइची की भीनी भीनी खुशबू ,चीनी का थोड़ा सा ज्यादा मीठापन और दूध ,पानी ,चायपत्ती का सधा हुआ मिश्रण !!! और इन सब के साथ मैं,मैं वेदांत............... अच्छा सा एहसास है, सुबह सुबह सूरज की किरणों का बालकनी तक पहुंचने की कोशिश ,चिड़ियों की चहक ,हलकी हलकी सी ठंडी हवा ,पूरी तरह से घने वृक्षों सी ढकी मेरी बालकनी और उसकी छाँव में मैं ,अपनी सुबह की पहली परफेक्ट चाय के साथ। यह पल मुझे सबसे ज्यादा सुकून देते है और यह पल हमेशा से ही मेरी हर सोच, मेरी हर कश्मकश के गवाह रहे है और इन्ही पलों में हर रोज़ की तरह मैंने आज भी एकबार फिर अपना मोबाइल उठाया , सोशल साइट पर एक प्रोफाइल खोली , उसपर कुछ तस्वीरें देखी,जानना चाहा कि सब कुछ ठीक है ना ?कुछ नया तो नहीं ???? और इसी के साथ चाय की आखिरी घूँट ली ही थी कि लिपिका की आवाज आयी "वेदांत ,वेदांत कहाँ हो तुम?" सोच का सिलसिला अचानक से टूटा ,"मैं,मैं यहाँ ,बालकनी पर । " मैंने चाय का कप और मोबाइल दोनों टेबल पर रखते हुए जवाब दिया। लिपिका बालकनी पर मेरे पास पहुंची ही है कि मैंने केतली से दूसरी कप चाय जो अभी तक गरम है , निकालकर उसकी ओर बढ़ाया। पर वो हमेशा की तरह अपनी ही धुन में है। उसने शायद इस और ध्यान ही नहीं दिया और तेज़ी से मेरे पास आकर अपने दोनों हाथों को मेरे गर्दन में डालते हुए धीमे से मेरे कान में बोला "हैप्पी एनिवर्सरी स्वीट हार्ट । लव यू "। मैं जब तक उसकी बातों का जवाब देता ,उधर से अबीर और अद्विका "हैप्पी एनिवर्सरी माँ और पापा " कहते हुए हमारे पास आ गए। मैंने सबको एक साथ अपनी बाँहों में लेते हुए मुस्कराहट के साथ अपना आभार व्यक्त किया। सब खुश है ,मैं भी। सब कुछ बहुत अच्छा है। आज का दिन बहुत ख़ास है। मुझे और लिपिका को आज पूरे पच्चीस साल हो गए है एक साथ एक दुसरे के सुख दुःख में साथ रहते रहते । इन पच्चीस सालों में ज़िन्दगी में हर तरह के उतार चढ़ाव आये है ,पर हमने प्यार से ,समझदारी से, अपने घर को,अपने रिश्तों को संभालकर रखा है। ************************************************************************************************* शाम का समय है, सब व्यवस्था हो चुकी है । मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ हंसी मजाक में व्यस्त हूँ और लिपिका भी हमारे रिश्तेदारों और पड़ोसियों से घिरी हुई है कि तभी अबीर ने लगभग चिल्लाते हुए बोला ," माँ ,पापा जल्दी आइये ,केक काटने का समय हो गया है । " सामने नज़र गयी तो देखा अबीर , अद्विका और उनके दोस्त एक बड़े से केक के साथ हमारा इंतज़ार कर रहे है। "इसकी क्या जरुरत थी बेटा?"लिपिका ने लगभग शरमाते हुए बोला। मेरा ध्यान अकारण ही लिपिका की ओर चला गया। आज बहुत दिनों के बाद उसे इतना तैयार देखा है। हलके गुलाबी रंग की सिल्क की साड़ी जिसपर काले रंग का बॉर्डर ,ढेर सारी चूड़ियां हाथों में ,गुलाबी रंग की बिंदी ,माथे पर आती हुई बालों की हलकी सी लटे ,सब उसकी खूबसूरती को बयां कर रही हैं । हाँ चेहरे पर थोड़ी सी झुर्रियां आ गयी है ,पर यह भी उसकी ख़ूबसूरती को कम करने में नाकाम है। आज भी उसके चेहरे की चमक ,उसकी मुस्कुराहट एकदम वैसी ही है जैसे आज से पच्चीस साल पहले ,जब वह पहली बार मेरे घर पर आयी थी। कुछ भी तो नहीं बदला इतने सालो में,सब कुछ आसानी से हो गया। हाँ बच्चे बड़े हो गए है ,इतने बड़े की अब हमारी खुशियों का ध्यान रखने लगे हैं। तभी तो पूरी सालगिरह की तैयारी की जिम्मेदारी अबीर और अद्विका ने अपने ऊपर ले ली। अथितियों और रिश्तेदारों को बुलाने से लेकर ,घर की सजावट,खाने पीने की व्यवस्था ,सब यह दोनों ही संभल रहे है। हमें तो बस एक ज़िम्मेदारी दी है कि कम से कम हम आज के दिन अपने अपने ऑफिस से छुट्टी ले ले। और मैंने भी एक नहीं दो दिन की छुट्टी ले ली है पर शायद लिपिका को मुश्किल से केवल आज की ही छुट्टी मिली है। खैर हमने केक काटा,सभी ने बधाइयाँ दी । अबीर ,अद्विका ने अपने दोस्तों के साथ मिलके खूब मस्ती की। एक अच्छी और खुशनुमा शाम बीती,सभी ने खाना खाया ,हम लोगो ने भी बहुत सी गॉसिप और हंसी मजाक किये और फिर सभी लोग अपने अपने घर चले गए। ज्यादातर रिश्तेदार भी रात में ही वापस चले गए। सब कुछ अच्छी तरह से संपन्न हो गया। अबीर और अद्विका भी अपने अपने कमरे में सोने चले गए ,मैंने और लिपिका ने थोड़े समय तक बातें की ,अपने पुराने दिनों को याद किया। फिर कब नींद ने लिपिका को अपने आगोश में ले लिया उसे भी पता नहीं चला। मैं भी अब सो जाता हूँ ,यह बोलते हुए मोबाइल किनारे पर रखी हुई टेबल पर रखा ही था कि एक मैसेज की आवाज़ आयी। मन किया कि देखूं किसका है ,फिर सोचा की जरूर कोई बधाई का मैसेज होगा। चलो अब कल जवाब दूंगा और यह सोचकर सो गया। **************************************************************************************************** आज सुबह एकदम सामान्य सी ही है।सब अपने अपने काम में लगे हुए है। अद्विका और लिपिका ऑफिस जाने की तैयारी कर रहे है और अबीर भी अपने कॉलेज की। कामवाली भी लगभग अपना काम ख़तम कर चुकी है। आधे घंटे के बाद पूरा घर खाली हो गया है बस मैं ही रह गया हूँ आज तो अकेला यहाँ । एक नज़र घर पर डाली ,सब कुछ अपनी जगह पर व्यवस्थित। कल जहाँ पर इतना ज्यादा शोरगुल था,आज पूरी तरह से सन्नाटा पसरा है। मैंने अपने लिए चाय बनायीं ,वही परफेक्ट दो कप चाय और बालकनी पे आकर आराम से बैठ गया। अखबार देखना शुरू ही किया था कि तभी याद आया की रात में किसी ने मैसेज या शायद सालगिरह की बधाई भेजी थी। फ़ोन उठाकर चेक किया तो देखा कि किसी अनजान नंबर से मैसेज आया था ,"हैलो".............. बहुत कोशिश की पहचानने की पर याद नहीं आया किसका नंबर है ये। शायद कोई ऑफिस का सहकर्मी या फिर कोई रिश्तेदार ?हो सकता है कोई पुराना स्कूल या कॉलेज का मित्र या फिर वो...............नहीं नहीं ...........कौन है यह ???????कुछ समझ नहीं आया। एक बार लगा गलती से किसी ने मुझे भेज दिया और मैसेज भी क्या है ,सिर्फ एक हैलो.............अब इसका क्या उत्तर दू?दिमाग बहुत देर तक इसी उधेड़बुन में लगा रहा कि कौन हो सकता है ? वैसे बहुत सामान्य सी बात है किसी अन्जान नंबर से हैलो का आ जाना ,पर मेरे साथ पहली बार ऐसा हुआ है। बहुत देर तक इस "हैलो" को देखता रहा ,शायद कुछ पहचानने की कोशिश कर रहा हूँ और फिर ज़ुबान से निकला "अरे कहीं ये वो तो नहीं"??पर ये कैसे हो सकता है ?इसकी तो कोई उम्मीद ही नहीं कि वो मुझे मैसेज करे या फिर फ़ोन। उसे तो कुछ पता ही नहीं। लेकिन अगर ये वही है तो..............न जाने कितने सवाल मेरे दिमाग में दस्तक देने लगे। अजीब सी बेचैनी होने लगी। बहुत देर तक ऐसे ही मोबाइल हाथ में लेकर बैठा रहा, कि तभी फ़ोन की घंटी बजी ,ऐसा लगा किसी ने अविश्वसनीय सपने से जगा दिया है । "हा लिपिका ,क्या हुआ ,अभी कैसे फ़ोन किया ,सब ठीक है ना ऑफिस में ?"एक ही सांस में सब पूछ लिया। हा वेदांत ,सब ठीक है ऑफिस में'। तुमने नाश्ता कर लिया या नहीं ? लिपिका ने संशयपूर्ण लहजे में पूछा। जैसे कि वो जानती है ,अगर वेदांत घर पर अकेला है तो कुछ भी समय पर होना मुश्किल है। "अभी नहीं "मैंने कहा, थोड़ा हड़बड़ाते हुए,जैसे कोई चोरी पकड़ी गयी हो। "बस जा ही रहा हूँ। " “मुझे पता था वेदांत ,इसीलिए याद दिलाने के लिए फ़ोन किया है। अब जाकर नाश्ता कर लो और हा सुनो मुझे आज घर आने में थोड़ी सी देर हो जाएगी ,कुछ जरूरी काम आ गया है।“ लिपिका ने अपनी व्यस्तता दिखाते हुए कहा। "कोई बात नहीं लिपिका ,तुम आराम से अपना काम खत्म कर लो। बाय।" मैंने आश्वाशन के साथ बोलते हुए फ़ोन रख दिया। मन अभी भी विचलित हो रहा है । किसका नंबर है यह ? चलो पूछ ही लेता हूँ और उसी नंबर पर मैसेज लिखा "हैलो ,आप कौन,माफ़ करियेगा ,मैंने आपको पहचाना नहीं " और भेज दिया फिर इंतज़ार करने लगा बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई छोटा सा बच्चा अपने नए खिलौने का इंतज़ार करता है। समझना मुश्किल है यह एहसास क्यों हो रहा है ? शायद यह वही है ,इसीलिए ..................... नया मैसेज ,वही अंजान नंबर "मैं,मैं धृति ,तुम वेदांत हो ना ? “धृति........नहीं , यह नहीं हो सकता। यह कैसे ?”यह नाम पढ़ते ही मेरे माथे पर पे हज़ारों बल पड़ गए। दिल थमने सा लगा। सब कुछ रुका हुआ सा दिखने लगा। मुँह से बस एक आवाज आयी " धृति तुम ????"