जैसे रोज़-रोज़ बाज़ार में खाकर जी ऊब जाता है, मन करता है कि अब घर का सादा भोजन मिले। ठीक वैसे ही पत्रकारिता में रोज़-रोज़ की हत्या, दुर्घटना, अपहरण, बलात्कार आदि के समाचारों को लिखते-लिखते मन करता है कि जीवन के सुनहरे पहलू के बारे में भी कुछ लिखूँ। पीड़ाजनक ही सही लेकिन यह मौका भी मिल गया। हुआ यूं, कि पैर में मोच आ जाने के कारण डॉक्टर ने दो सप्ताह के लिए बिस्तर पर लेटने का परामर्श दिया - अर्थात इतने दिन घर पर ही रहना है। बस इस घटना को परेशानी की जगह एक सुअवसर मान कर घर में लेटा-लेटा सोच रहा हूँ कि किस विषय पर लिखूँ। सोचता हूँ समाज में कई बदलाव हो रहे हैं - आधुनिक तकनीक ने जीवन में काफ़ी दखल दे दिया है। सबके हाथ में मोबाइल है, सभी को पल-पल पूरे जगत की जानकारी उपलब्ध है। आध्यात्मिक से लेकर वैज्ञानिक, भौगोलिक आदि सभी तरह का ज्ञान इंटरनेट के माध्यम से सब को मिल रहा है। सूचना की बाढ़ में सच्चाई कितनी है - पता नहीं! आज के समाज में हर व्यक्ति सूचना से तो जुड़ रहा है लेकिन अपने और अपनों से दूर हो रहा है। अब किसी को किसी से मिलने की ललक नहीं है, बस मोबाइल से वीडियो या आडिओ कॉल कर लिया या फिर सोशल मीडिया पर संदेश देकर तसल्ली कर लेता है। मेरा फ़ोन भी मेरे जल्द ठीक हो जाने की शुभ कामनाओं से भरा हुआ है।