भूखी खुद रहकर जो हमें अन्न खिलाती है, खुद मर मर के हमें जीना सिखलाती है... अंधेरों से हमें रोशनी में लाती है, भूली भटकी राह फिर से याद दिलाती है... गीले में खुद सो कर हमें सुखे में सुलाती है, होते हैं जब हम बिमार तो जाग रात वो बीताती है। काँटों पर चलकर खुद हमारे रास्ते महकाती है, दो पल भी दूर हो तो सबको माँ याद आती है। कभी हँसाती है,कभी रूलाती है, पर सीधी राह दिखाती है... रोते,हस्ते,गाते,जाते सब लेते इसका नाम, ये तो वो है जो पूरे विश्व में समाती है। भोली सूरत माँ की सारे गम भूलवाती है, बूरा ना चाह कर कभी किसी का,सबका भला वो चाहती है। माँ तो वो रत्न है जो सबको धनी बनाती है,दो अक्षर के गस शब्द को,मैं कैसे करूं बयाँ... ये तो वो है जो पूरा विश्व बनाती है। माँ को लिखते लिखते तो मेरी शब्दकोश ही खत्म हो जाती है, पूरी प्रकृति में बसी है माँ... कभी चिडिया बन चहचहाती है, कभी फूलों सी मुस्काती है। माँ की प्यारी लौरी मेरी सारी थकान मिटाती है, खोना ना कभी माँ को,दूख ना देना कभी भी माँ को क्योंकि....खुशकिस्मतों को ही माँ मिल पाती है। ................................................... ................................................... (मेरी माँ) माँ माँ ओ मेरी माँ, तेरा आँचल छोड के तु ही बता मैं जाऊ कहां? माँ माँ ओ मेरी माँ तेरा आँचल ठंडा ठंडा, ठंडी तेरी छाया... तेरी छाया छोड के तु ही बता मैं जाऊ कहां? ओ मेरी माँ... तुने मुझे जन्म दिया, तु ही मेरी जन्नी माँ तेरी बाहों को छोड के, तु ही बता मैं जाऊ कहां? माँ माँ ओ मेरी माँ तु लडती है,तु बिगडती है, हमें सीधी राह दिखाने के लिए तेरी सीधी राह को छोड के, तु ही बता मैं जाऊ कहां? माँ माँ ओ मेरी माँ