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Chapter 1 :

वो सुबह आएगी!

वो सुबह कभी तो आएगी, 

जब हम एक होंगे, 
ना कोई उच्च होगा 
और ना कोई नीच होगा, 
होंगे सब आपस में भाई-भाई,
जब खेतों में खुशियों के फसल लहल़ाहायेंगे- 
वो सुबह कभी तो आएगी!!

वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे- 
ना होगा कोई दुश्मन अपना,
ना होगा आपस में द्वेष भावना-
ना होंगे कभी आपस में लड़ाई,
ना बनेगा कोई महिसासुर,
ना होगा कोई अब कसाई,
जब रहेंगे सब मिलजुल कर-
तब- खुशियों के गीत गुनगुनाएँगे- 
वो सुबह कभी तो आएगी, 
जब हम एक होंगे!!

वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे, 
ना होगी धार्मिक झंझट कही पे,
ना होगी संवेदनशील आहत कही पे-
ना होगा 90 का शासन 10 पर, 
ना होंगे झूठे-वादे-भाषण-मंच पर, 
होगी आज़ादी खुल के जीने का,
जब आज़ाद पंछी की तरह- 
खुले आकाश मे -उड़के क़हक़हे लगाएँगे- 
वो सुबह कभी तो आयेगी,
जब हम एक होंगे!!

वो सुबह कभी तो आयेगी, 
जब हम एक होंगे-
ना बिलखेंगे भूखे-नंगे बच्चे सड़क पे,
ना सुनी होगी ममता की आँचल- 
ना लूटेगी माँ-बहनो की असमत- 
ना कभी गरजेगा बिन बरसने वाला बादल- 
मिटेगी जातिए भेद-भावना,जब-
सब एक साथ बारिश में मिलकर नहाएँगे- 
वो सुबह कभी तो आएगी!!

वो सुबह कभी तो आएगी- 
जब हम एक होंगे- 
होंगे सारे सपने साकार, 
दुनिया को देंगे नयी आकार, 
ना मरेंगे भूखे-नग्न-बिलखते बच्चे,
बनेगा मुहिम जब आत्मविश्वास होंगे सच्चे-
होगी एकजुटता ताक़त हमारी,
जब- वैशाखी-क्रिसमस-ईद-दीवाली-
साथ मिलकर मनाएँगे- 
वो सुबह कभी तो आएगी,
जब हम एक होंगे!!

वो सुबह आएगीं और हमसब एक होंगे,
जब-
मिटाएंगे अश्लीलता,समाज को देंगे नया आयाम, 
जनवाद-सुसंस्कृति का फ़ैलाएँगे पयाम, 
चुनेंगे हम सब नया ‘विकल्प’ , 
हम सब लेंगे अब नया ‘संकल्प’- 
ख़त्म करेंगे कुसंस्कृति- औ-साम्राज्यवाद को, 
वो सुबह ज़रूर आएगी “प्रियम”,
जब- खादी के वस्त्र पहने, 
उन रक्षसो को अब हम सब मिलकर भगाएंगे- 
वो सुबह तो आएगी, 
जब हम एक होंगे, 
ना कोई उच्च होगा और- 
ना कोई नीच होगा- 
ना बनेगा हिंदू-मुस्लिम-सिख-इसाई, 
होंगे सब आपस में भाई-भाई, 
अब खुशियों के चमन में फूल भी,
गाने गुनगुनाएँगे- 
वो सुबह ज़रूर आएगी-ज़रूर आएगी-ज़रूर आएगी!