*संदेश* सुन पवन ये संदेशा तू ले करके जा राह तकती हुई आंख थक जाएंगी वक़्त है शेष तो चल रही ज़िन्दगी जाने कब ज़िन्दगी रूठ रुक जाएगी एक लाठी मिलेगी थमी हाथ में धरता के चेहरे पर झुर्रियां बसती हैं हँसते कम हैं मगर जब भी हंसते है वो उनके हँसने पे उनकी नज़र हंसती है वो पिता हैं मेरे,उनके पद चूमना मेरे जैसी शकल तुमको दिख जाएगी सुन पवन ये संदेशा तू ले करके जा राह तकती हुई आंख थक जाएंगी जाना चिमनी के रस्ते,रसोई में तुम गंध भोजन की तुमको बड़ी भाएगी रोटियां सेंकते हाथ जलते भी हों एक रोटी परंतु न जल पाएगी गोद सर अपना रखना,है माता मेरी अपना लल्ला समझ हाथ रख जाएगी सुन पवन ये संदेशा तू ले करके जा राह तकती हुई आंख थक जाएंगी कक्ष वो ढूंढना जो सिसक हो रहा बैठी नारी शिकायत करेगी तुम्हें जितने आंसू बहेंगे शिकायत में तब उतने आंसू कयामत दिखेगी तुम्हें माथा तुम चूमना,है प्रिया वो मेरी गर्भ संतान भी मेरी दिख जाएगी सुन पवन ये संदेशा तू ले करके जा राह तकती हुई आंख थक जाएंगी फिर सफर करना तुम दूर के गांव तक एक घर होगा रोशन ठहरना वहाँ सेवा में एक नारी भगी आएगी पूंछना हाथ धरकर ठहरना कहाँ वो बहिन है मेरी,वो सुरक्षा मेरी ख़ुद कलाई तुम्हारी भी झुक जाएगी सुन पवन ये संदेशा तू ले करके जा राह तकती हुई आंख थक जाएंगी ©अनुज उपाध्याय १७ जून २०१९ सायं ७:०६ *बेटियाँ* आप को सींचकर,आप को त्यागकर पुष्प कुल का खिलातीं हैं ये बेटियाँ ऊंची भी थी उड़ान,नापती थी गगन बंदिशों में बंधी उसकी तक़दीर है आप से न बनी,आप भी न बनी बस अधूरी रही उसकी तस्वीर है त्याग,सत्कर्म,तप जैसा साधु करें वैसा जीवन बिताती हैं ये बेटियाँ आप को सींचकर,आप को त्यागकर पुष्प कुल का खिलातीं हैं ये बेटियाँ बाप की न सगी बन सकीं ये कभी जन्म से माथ पर ये कहीं दाग है मात मूक रहीं,कष्ट भी देखकर बेटी होने का मतलब यही भाग है भाई दूजे शहर पढ़ सके बोर्ड पे स्लेट सपना मिटाती हैं ये बेटियाँ आप को सींचकर,आप को त्यागकर पुष्प कुल का खिलातीं हैं ये बेटियाँ जिसने बचपन के कंगन उतारे न थे उसके हाथों सुहागन की चूड़ी लदी जब पराई हुई,पर की पीड़ा दिखी कष्टसागर में मिलती गई ये नदी हारना मौत है,जीतना ज़िन्दगी जीत क़ाबिल बनाती हैं ये बेटियाँ आप को सींचकर,आप को त्यागकर पुष्प कुल का खिलातीं हैं ये बेटियाँ १८ सितंबर २०१९ ३:४९ रात्रि