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Chapter 1 :

Arjun

मैं उलझन में हूँ 

या ख़ुद ही उलझन हूँ 
एक वो अर्जुन था 
एक मैं अर्जुन हूँ  

बक्श दूँ अपनों को 
या फिर वार करुँ 
जमाने की सुनूँ या 
दिल का इज़हार करूँ 

ज़ुल्म सहूँ खामोशी से 
और चुप रहूँ या कह दूं 
बात दफन जो दिल में 
और कलम को तलवार करूँ  

मैं उलझन में हूँ 
या खुद ही उलझन हुँ 
एक वो अर्जुन था 
एक मैं अर्जुन हूँ  

लोग जीने के ढंग बदल देते हैं 
गिरगिट की तरह रंग बदल देते हैं 
हैं कुछ ऐसे जो देखते देखते 
संग बदल देते हैं 

सोचता हूँ मैं भी 
बदल के देखूँ 
या फिर रहने दूँ,
अपने ज़मीर से कुछ सीखूँ 

काबिलियत मेरी वैसी ही है 
जैसी उसकी थी 
हैसियत मैं भी रखता हूँ 
जैसी उसकी थी 
बात बस हिम्मत की है 
जो ना मुझमें है ना ही उसमें थी  

सोचता हूँ इस बार 
हिम्मत कर के देख ही लूँ 
आगाज़ तो करना होगा 
अंजाम से कब तक डरूँ  

मैं उलझन में हूँ 
या ख़ुद ही उलझन हूँ 
एक वो अर्जुन था 
एक मैं अर्जुन हूँ