आरक्षण की बजाय हो 'योग्यता' का संरक्षण! मै (अनूप) आरक्षण पर कहना चाहता हूँ:- पीर पर्वत सी हुई अब ये पिघलनी चाहिए, इस हिमालय से कोई गंगा निकालनी चाहिए, मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए कोई हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं, शर्त लेकिन है के ये सूरत बदलनी चाहिए| “कई गम है जिन्हें कोई जुबान ना मिली ,भटकता रहा अंधेरो मै शमा ना मिली, आरक्षण कि आंधी इस देश मै ऐसी चली , काबिल लोगो को उनकी सही जगह ना मिली . देशवासियों की इस हालत के लिये और कौन जिम्मेदार हो सकता है ? यदि मुखर होकर सही को सही और गलत को गलत कहने का साहस सरे युवा इकठ्ठा कर लें तो एक हुंकार भरने से ही भ्रष्ट व्यवस्था सूखे पत्तों की तरह थर्रा उठेगी| दिल में विश्वास रखिये आपकी आवाज़ भी हर मजबूर के हालात बदलने वाली आवाज़ हो सकती है|