अघोरी शिव ही शिव हैं जिसके अंदर जानें जो शिव-माया का अंतर। प्रेम शिव से करता है शिव पर ही वो मरता है। शिव हैं उसकी श्वांसों में शिव उसकी प्रश्वासों में। शिव मिलन को जिसने जग की मर्यादाएं तोड़ी हैं। शिव को भी है प्यारा सबसे जिसे कहते हम अघोरी हैं। मृत मांस का भोजन करता सारी रीत उसने छोड़ी है। प्राण बिनु तन है बस अवशेष कहता हमें अघोरी है। मैं क्या हूं समझाये वो ही मेरी काया भी किराए की। एकदिन मिट्टी में मिल जाएगा आत्मा शिव में ही खो जाएगी। शिव हैं सत्य, शिव ही सुंदर शिव बिन जग माया घनघोर। हम बस ढोंगी अभिनेता हैं शिव को पुजे एक अघोर।। मुकेश सिंह सिलापथार,असम। संपर्क: 9706838045 Thanks and Regards Mukesh Singh Poet, Columnist 9706838045